kisi ek kavita ki sameeksha kijiye
Answers
An oil refinery or petroleum refinery is an industrial process plant where crude oil is transformed and refined into more useful products such as petroleum naphtha, gasoline, diesel fuel, asphalt base, heating oil, kerosene, liquefied petroleum gas, jet fuel and fuel oils.
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Explanation:
मनोज कुमार झा का यह दूसरा संग्रह ‘तुमने विषपान किया है’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। संग्रह में इसी शीर्षक से एक कविता भी है। इनका पहला सग्रह ‘लाल-नीली लौ’ था। मनोज कुमार झा एक चर्चित पत्रकार भी हैं। बहुत ही निर्भीक, अभिव्यक्ति के खतरे उठाने वाले और ईमानदार व्यक्तित्व के धनी हैं, सच को बेबाक कहने वाले। यूं कवि ‘सच को सच की तरह कहने’ के परिणाम से परिचित न हो, ऐसा भी नहीं है – ‘सच को सच की तरह कहा/ तो सच काटने दौड़ा/ मेरा गला दबाने लगा/ और मैं छटपटाने लगा।‘
संग्रह की कविताओं से स्पष्ट है कि ये जीवन, समाज और आसपास घट रहे के प्रति गहरी दृष्टि रखते हैं और गहरा सरोकार भी। मीडिया, बाजारवाद आदि सब के प्रति कवि की निगाह है। लेकिन इनकी कविता किसी मोर्चे पर डटे रहने के बावजूद, इनकी शैली शोर मचाने वाली न होकर गम्भीर और चिंतन-प्रशस्त करने वाली है। यूं भी कविता इनके लिए ‘...महज शब्द नहीं/ ...जीने की आखिरी शर्त है।‘ संग्रह में अनेक कविताएं हैं जिनके माध्यम से कवि की कविता संबंधी अवधारणा ही नहीं, बल्कि प्रतिबद्धता को भी समझने का अवसर मिलता है। एक अंश जानिए:
कविता तुझसे मेरा पुनर्मिलन है
कविता मेरी ही खुद की तलाश है
यह मेरी आत्मा का दुर्ग है
यहां मैं हमेशा किसी न किसी मोर्चे पर होता हूं
कविता ने मुझे बताया बारूद, गोली और भीषण हथियारों से
रक्तपात और दुश्मनों के संहार से जीवन समाज मनुष्य नहीं बदलेगा
कविता में इतिहास का बोध है
कविता दुख की गाथा है तो सुख की कितनी बड़ी अमिट आकाँक्षा है।
अच्छी बात यह है कि कवि की दृष्टि भले ही स्थितियों की क्रूरता को पूरी भयावहता और चालाकियों के साथ विद्यमान कर रही हो, जैसे ‘अंधेर नगरी’ में, लेकिन वह टूटने, भ्रमित होने और नाउम्मीदी की राह पर नहीं ले जाती। वेदनामय आक्रोश जरूर है, जैसा एक कविता ‘जल रहा है जनतंत्र’ में महसूस किया जा सकता है। कवि के सामने हर क्षण अकेले होते जा रहे व्यक्ति को भयमुक्त और अँधेरे से दूर करने की चिंता है तो चुनौती भी, लेकिन राह के रूप में उसके पास कोई प्यार भरी उम्मीद की डोर भी है, जिसके प्रति वह आश्वस्त है। इन कविताओं में सुखद नाटकीयता और संबोधन शैली का भरपूर प्रयोग किया गया है। बार-बार एक रहस्यमयी विविधरंगी ‘तुम’ की उपस्थिति होती रहती है, जो विचलित होते व्यक्ति की शक्ति के रूप में है। इतना ही नहीं, अपवादस्वरूप यदि यह ‘तुम’ उदास होता है तो उसके लिए भी काव्यमय समझ आ खड़ी होती है – अब तुम इतने उदास क्यों होते हो/जिंदगी में गम के सिवा क्या कुछ और नहीं/ ....यह लोक उतना ही नहीं है जो दिख रहा है। (कविता: यह संसार बस ऐसा ही नहीं है)
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