kisi prasiddha chitra ka varnan Karo
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ईश्वरीय सृष्टि में अनन्त सौन्दर्य समाया हुआ है। मनुष्य की सृजनात्मक प्रवृत्ति ने कला के विभिन्न आयामों को जन्म दिया। जैसे प्रकृति चित्रण, संयोजन, व्यक्ति चित्रण, छापा चित्रण तथा अमूर्त चित्रण आदि। दृश्य कला ही एक ऐसी विधा है, जिसमें प्रकृति में समाहित सौन्दर्य को स्मरणीय और आनन्ददायक बनाया जा सकता है। चित्रकार को अनन्त प्रकृति में से कुछ ही बिन्दु आकर्षित कर पाते हैं। इन आकर्षक बिन्दुओं को जब वह चित्र रूप में परिणित करता है, तो वह दृश्य चित्र कहलाता है। चित्रकार इसे जल रंग, तेल रंग, एक्रेलिक, पेस्टल, छापा कला के माध्यम से सृजित करता है।
दृश्य चित्रण का अर्थ है हमारी आँखें जो भी जीवित-अजीवित रूपों को देखती हैं उसका कलात्मक चित्रण जो भूमि और असीमित आकाश के मध्य विद्यमान है। प्लेटो ने कहा है कि ‘कला सत्य की अनुकृति की अनुकृति है’। उनका भाव यह था कि सत्य ईश्वर है प्रकृति उसकी अनुकृति और इसी प्रकृति की नकल करता है। अतः दृश्य चित्रण में भी प्रकृति या पर्यावरण की नकल ही की जाती है। चित्रकार इसमें कल्पना और कलात्मकता का प्रयोग कर अधिक सौन्दर्यपूर्ण बना देता है। अतः यह कहा गया है कि कलाकृति निसर्ग से अधिक श्रेष्ठ है। “भारतीय दृश्य कलाओं का इतिहास बहुत पुराना है। गुफा चित्र के अन्तर्गत अजन्ता में दूसरी से सातवीं सदी को भारतीय भित्ति चित्रण में स्वर्णकाल (Golden Period) के नाम से जाना जाता है। ये पेंटिंग मुख्यतः जातक कहानियों पर थी। बुद्ध की पुनर्जन्म की कथाओं पर आधारित थे। ये चित्रण महलों के अलावा घर, Foliage और मनुष्य का बहुतायत से प्रतिनिधित्व करते थे। यही कारण है कि अजन्ता के चित्रों को वास्तुकला-दृश्य चित्रण के रूप में स्वीकारा है। इसके अलावा भारतीय मध्यकालीन लघुचित्रों को विद्वानों ने भारतीय कला के इतिहास में शानदार पृष्ठ के रूप में माना है। ये चित्र परिष्कृत और Delicate होते हैं और मनोवैज्ञानिक प्रभाव छोड़ते हैं। भारतीय दृश्य चित्र युद्ध, आखेट, तैराकी, नृत्य, सामुद्रिक नृत्य, संगीत और आनन्द विषयों पर आधारित बने हैं।”
“यथार्थवादी चित्रण में दृश्य चित्रों में विशेषतः वातावरण के चित्रण पर दृष्टि डाली। उनमें अवनींद्रनाथ टैगोर, गगनेन्द्र नाथ टैगोर, रविन्द्रनाथ टैगोर तथा नन्दलाल बोस आदि थे। अवनींद्रनाथ ने रेखाओं और रंगों के माध्यम से विशिष्ट स्थानों के दृश्य चित्र बनाए। दृश्य चित्रण परम्परा में जिन चित्रकारों को सफलता मिली, उनमें इन्द्रा दुगार, बी.आर. पानेसर, सुहास राय, गणेश हलोई आदि हैं। भारतीय दृश्य चित्रण में समुद्री दृश्य, शहरी दृश्य, ग्रामीण दृश्य और प्राकृतिक दृश्य बनाए जाते हैं।”
राज्याश्रयों और धर्म के प्रभाव-मुक्ति से स्वतंत्र दृश्य चित्र बनाए जाने लगे। दृश्य चित्रण पर पश्चिमी देशों का प्रभाव भी दिखाई देता है।
पश्चिमी देशों में दृश्य चित्रण बहुत पहले से बनता चला आ रहा है। 16वीं सदी में डच में पहली बार 1598 में दृश्य चित्रण का उल्लेख किया गया है।
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