kitab ki atma katha in hindi
Answers
प्रस्तावना
दुनिया पुस्तक से शुरू होकर वापस पुस्तक पर खत्म हो जाती है। हम कितना कुछ सीखते हैं पुस्तक से, बचपन से बुढ़ापे तक हम सीखते ही रहते है, अच्छी पुस्तक किस्मतों को बदलने का दम रखतीं है। डिजिटल समय के कारण दुनिया ने अब किताबों को रख दिया है और मोबाइल फोन को हाथ में ले लिया है। टेक्नोलॉजी की ये दुनिया स्पीड तो देती है लेकिन सहूलियत और मन के सुकून को हमसे छीन लेती है। आज मैं आपको अपनी आत्मकथा बताऊंगी। मैं कुछ कागजों से बनकर तैयार होती हूँ, मेरा नाम किताब है, मैं इस बड़ी सी दुनिया की एक छोटी सी बस्तु हूँ।
वैसे तो मैं हर किसी के घर मे रहती हूँ लेकिन मेरा घर पुस्तकालय है। मेरा जन्म करोड़ो वर्ष पहले हुआ था जहां मैं पेड़ के सूखे पत्तों का समूह हुआ करती थी, लेकिन आज के समय में मैं घास की लुगदी से बने कागज से बनती हूँ, मैं अनेक रंगों में बटी रहती हूं। मुझमें अनेकों कहानियां, कविताएँ, उपन्यास, ज्ञानवर्धक तथ्य लिखे रहते हैं, बच्चे मुझे पढ़कर ज्ञान प्राप्त करते हैं और बूढ़े भी मुझे पढ़कर अपने ज्ञान में बढ़ोत्तरी करते हैं। मैं लोगों का मनोरंजन भी करती हूँ और समय-समय पर उन्हें सही और गलत का आभाष भी कराती हूँ।
लोग मुझे मां सरस्वती का अंग मानते हैं और मेरी पूजा करते हैं, मैं भी बिना किसी भेदभाव के दुनिया को बराबर ज्ञान देती हूँ। महाऋषियों ने मुझमें अनेकों मंत्र और महाकाब्य लिखे। बड़े-बड़े ग्रंथ मुझमें ही लिखे गए है। मैं धर्म और संस्कृति की धरोहर हूँ। मैंने करोड़ों वर्ष पुराने इतिहास को कुछ पन्नो में मानवजाती के सामने रख दिया। किसी ने कहा था कि – किताबेंं मनुष्य की सबसे अच्छी दोस्त हैं, लेकिन आज की भीड़ भरी दुनिया में मैं अकेली रह गई हूँ जहाँ बहुत कम लोग ही मेरे दोस्त हैं। आज मैं पुस्तकालय की चार-दीबारों में बन्द पड़ी रहती हूं, मुझे बहुत कम लोग ही हाथ लगाते है, मेरे पृष्ठों पर मिट्टी लग गई है और और मेरे पन्नो को चूहों ने कुतरना शुरू कर दिया है।
आज आधुनिक समय मे दुनिया ने बहुत सारी तरक्की कर ली है जहां मेरी जगह अब तमाम इलेक्ट्रॉनिक बस्तुएं (मोबाइल, टेलीविजन, लैपटॉप) आ गईं है जिन्होंने मुझे लोगों से दूर कर दिया है। जहां से मैं अब अकेली पड़ चुकी हूँ, मुझे इंतजार है अब दोबारा से जब लोग सहूलियत से बैठकर मुझे खोलेंगे और पढ़ेंगे। मैं चाहती हूँ कि ये तेज रफ्तार दुनिया प्रगति करे लेकिन इस तरह भाग कर नही, भागने में लोग एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं, जहां लोगों के हाथों में सफलता तो आती है लेकिन अपनापन खत्म हो जाता है। वो भाव खत्म हो जाते हैं जो दुनिया को चलाने के लिए जरूरी हैं और वो भाव कभी भी मोबाइल नही दे सकता। उसके लिए आपको मेरे पृष्ठों को एक बार फिर से खोलना होगा।
उपसंहार
बदलती दुनिया को फिर से किताबों की ओर लौटना चाहिए क्योंकि जो जानकारी और खुशी किताबें देतीं हैं वो मोबाइल फोन कभी नही दे सकती। बच्चे हों या बूढ़े सभी जीवनपर्यंत किताबों से ही सीखते रहते हैं। किताबें धीरे-धीरे मनुष्य को सफलता के रास्ते तक ले जाती है और अज्ञान रूपी धूल को जीवन से हटाकर और ज्ञान का प्रकाश जीवन मे उजागर करती हैं।