Kitab Ki Atmakatha points 1. Prastavana
2. Kitab ka (Mera) upyog
3. Istemal Karne Ka Tarika
4 Meri Abhilasha (ichcha)
Answers
Answer:
Explanation:
पुस्तक की आत्मकथा
प्रस्तावना -> मैं पुस्तक हूं मेरे बिना इस दुनिया का कोई भी वजूद नहीं था मैंने ही इस दुनिया को ज्ञान के इस मुकाम तक पहुंचाया है। मैंने वह जमाना भी देखा है जब मुझे भोजपत्र के रूप में सहेज कर रखा जाता था और आज मुझे कंप्यूटरों में सुरक्षित रखा गया है। पूरी दुनिया को मैंने ही शिक्षित किया है।
मेरा उपयोग - > इस धरा पर जिसने जो सीखा वो सारा ज्ञान मुझे दे दिया और वह सारा ज्ञान मैंने आगे बांट दिया। अगर मैं ना होती तो मनुष्य बिल्कुल पशु की तरह ही होता उसका विकास मेरे बिना संभव नहीं था मैंने ही मनुष्य को सभ्य और सुशिक्षित बनाया है। मैं लोगों को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करती हूं और सब भी नागरिक बनाती हूं। मैं ही उन्हें पीढियों द्वारा संचित ज्ञान देती हूं।
प्रयोग के तरीके-> मेरे पास संपूर्ण ज्ञान है अच्छा भी है और बुरा भी है। यह लोगों की मानसिकता पर निर्भर करता है कि उन्हें किस तरह का ज्ञान चाहिए। किसको सन्मार्ग की ओर जाना है और किसको कुमार्ग की ओर जाना है यह उसके विवेक के ऊपर निर्भर करता है। मैं सबको बराबर ज्ञान देती हूं।
मेरी अभिलाषा-> मेरी अभिलाषा है कि इस दुनिया में कोई भी मनुष्य शिक्षित ना रहे मैं सबको ज्ञान दे सकूं। मैं किसी में अमीरी और गरीबी का भेदभाव ना करूं। लेकिन आज मनुष्यों ने यह दीवार भी बना दी है। मेरी इच्छा है कि मैं सभी मनुष्यों को समान रूप से शिक्षित करूं।
उपसंहार -> पुस्तकें ही इस दुनिया का अतीत वर्तमान और भविष्य हैं इनके बिना मनुष्य जीवन की इस धरा पर कल्पना भी नहीं की जा सकती है। पुस्तकों ने ही अनादि काल से हमारे बुजुर्गों के ज्ञान को सहेज कर रखा है।