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प्रकृति के मूल गुणों में बाधा उत्पन्न करने की वजह से प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, भूकंप, भारी बारिश, बादल फटने, बिजली, भूस्खलन जैसी घटनाओं के रूपों में आती हैं और इनसे व्यापक विनाश होता है।
प्राकृतिक आपदाओं की वजह से भारत में हर साल हजारों लोग मारे जाते हैं। प्राकृतिक आपदाओं के बाद फैलने वाली महामारी के कारण भी हजारों लोग मर जाते हैं। इन घटनाओं के कारण हो रहे इतने बड़े पैमाने पर विनाश के बावजूद देश में एक प्रभावी आपदा प्रबंधन प्रणाली का अभाव है।
भूकंप, भूस्खलन, सूखा, बाढ़, सुनामी और चक्रवात आदि व्यापक प्राकृतिक आपदाओं के प्रमुख उदाहरण हैं। जहां तक भूकंप का सवाल है हिमालय, उप-हिमालयी क्षेत्रों, कच्छ और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह भारत में भूकंपीय दृष्टी से कमजोर क्षेत्रों में गिने जाते हैं।
भारत में आपदाओं के प्रकार और उनका प्रसार
भूकंप पृथ्वी के क्रस्ट में विशाल चट्टानों के रूप में मौजूद विवर्तनिक प्लेटों के बीच आंतरिक दबाव में वृद्धि के कारण होता है जिसकी वजह से वे टूटने लगते और भूकंप की वजह से जमीन हिलने लगती है। यदि भूकंप की तीव्रता अधिक होती है तो यह इमारतों, घरों, पुलों आदि को तोड़ देती है जिससे जीवन और संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचता है। कम तीव्रता वाले हल्के भूकंप के अलावा, व्यापक एवं विनाशकारी भूकंप उत्तरकाशी (1991), लातूर (1993), जबलपुर (1997) आदि देश के विभिन्न हिस्सों में आ चुके हैं।
गुरुत्वाकर्षण, घर्षण, भूकंप, बारिश और मानव द्वारा निर्मित कृत्यों की वजह से चट्टानों के फिसलने के कारण भूस्खलन होता है।
वर्षा की मात्रा में कमी होने की वजह से सूखा पड़ जाता है। यह मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है – मौसम विज्ञान से संबंधित, जल विज्ञान एवं कृषि से संबंधित। देश में 16 प्रतिशत क्षेत्र में सूखे का खतरा मंडरा रहा है। पहले ही 1941, 1951, 1979, 1982 एवं 1987 में देश गंभीर सूखे के दौर से गुजर चुका है। खास तौर पर देश के उत्तरी-पश्चिमी भाग ज्यादातर सूखा ग्रसित रहे हैं।
वहीं अधिक वर्षा के कारण बाढ़ आ जाता है। भारत दूसरा बाढ़ से अत्यधिक प्रभावित देश है। यहां लगभग हर साल भयानक बाढ़ की वजह से संपत्ति, और मानव एवं मानवीय संपत्तियों को नुकसान पहुंचता है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के अनुसार देश में बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्र के रूप में 40 लाख हेक्टेयर भूमि को को निर्धारित किया है। गंगा, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, तापी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों की घाटियां बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में शामिल हैं।
तूफान महासागरों में भूकंप (सुनामी) के कारण आते हैं। सागर में तापमान और दबाव की भिन्नता की वजह से चक्रवात आते हैं। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में, 5 से 6 उष्णकटिबंधीय चक्रवात प्रत्येक वर्ष आते हैं। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु में बंगाल की खाड़ी के पूर्व स्थित तट एवं गुजरात और महाराष्ट्र अरब सागर के पश्चिम तट उच्च क्षमता वाले चक्रवात और सुनामी के लिए जाने जाते हैं।
जंगल की आग या वनों में लगने वाली आग लंबी पत्तियों वाले पेड़ों में लगती है। यह अक्सर गर्म और शुष्क क्षेत्रों में बड़ी पत्तियों वाले शंकुवृक्षों और सदाबहार पेड़ों वाले जंगलों में लगती है। जंगल की आग की पर्यावरण, कृषि भूमि, जानवरों और कीटों के लिए खतरनाक है।
निष्कर्ष
प्राकृतिक संसाधनों का शोषण पर्यावरण असंतुलन का कारण है और यह प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति को बढ़ाने में अपना बढ़-चढ़कर योगदान दे रहे हैं। प्रकृति के अनैतिक शोषण के परिणामस्वरूप हमारे देश के कुछ भागों में बाढ़ आती है, जबकि कुछ हिस्से सूखे से पीड़ित हो जाते हैं। शहरीकरण और औद्योगीकरण में वृद्धि की वजह से जल संसाधनों का अनुचित दोहन हो रहा है। साथ ही इनसे पानी का संक्रमण भी हो रहा है और भू-जल स्तर में कमी आ गई है। शहरों के धीरे-धीरे कंक्रीट के जंगलों में परिवर्तित होने की वजह से भूजल का धरती में पुनर्भरण नहीं हो पा रहा है। शहरों में, कचरे को बिना साफ किए जहां-तहां फेंक दिया जा रहा है जिस वजह से बड़े पैमाने पर कचरे का संचय हो गया है। इस प्रकार हम अपनी लालच की वजह से प्रकृति के संतुलन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। आवश्यकता यह है कि हम प्रकृति के साथ सद्भाव के साथ विकास करें, अन्यथा प्रकृति की अनदेखी करके, अन्ततः हम अपने विनाश की कहानी खुद ही लिखेंगे
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