Hindi, asked by swamiprachi368, 21 hours ago

koi bhi essay of 9th class in hindi...​

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Answered by BrainlySrijan2
7

Answer:

1. स्वच्छ भारत अभियान

संकेत बिंदु-

भूमिका

स्वच्छता अभियान की आवश्यकता

स्वच्छ भारत अभियान

भूमिका – स्वच्छता और स्वास्थ्य का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। यह बात हमारे ऋषि-मुनि भी भलीभाँति जानते थे। वे अपने आसपास साफ़-सफ़ाई रखकर लोगों को यह संदेश देने का प्रयास करते थे कि अन्य लोग भी अपने आसपास स्वच्छता बनाए रखें और स्वस्थ रहें। यह देखा गया है कि जहाँ लोग स्वच्छता का ध्यान रखते हैं, वे बीमारियों से बचे रहते हैं।

स्वच्छता अभियान की आवश्यकता – बढ़ती जनसंख्या, व्यस्त दिनचर्या औ स्वच्छता के प्रति विचारों में आई उदासीनता के कारण पर्यावरण में गंदगी बढ़ती गई। साफ़-सफ़ाई का काम लोगों को निम्न स्तर का काम नज़र आने लगा। यह हमारी ज़िम्मेदारी नहीं ऐसी सोच के कारण गंदगी बढ़ती गई। हर छोटी-बड़ी वस्तुओं को प्लास्टिक की थैलियों में पैक किया जाना तथा वस्तुओं के प्रयोग के उपरांत प्लास्टिक या खाली डिब्बों तथा उनके पैकेटों को इधर-उधर फेंकने से उत्पन्न कूड़ा-करकट तथा गंदगी, तथा लोगों की सोच में बदलाव के कारण इस अभियान की विशेष आवश्यकता महसूस की जाने लगी।

स्वच्छ भारत अभियान – स्वच्छता को बढ़ावा देने तथा इसके प्रति लोगों में जागरुकता पैदा करने के लिए समय-समय पर संदेश प्रसारित किए जाते हैं तथा अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसी दिशा में 02 अक्टूबर, 2014 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘स्वच्छ भारत’ अभियान का आरंभ किया गया। इसे 2019 तक चलाया जाएगा जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की एक सौ पचासवीं जयंती होगी। इस अवसर पर अर्थात् 02 अक्टूबर, 2014 को प्रधानमंत्री ने देशवासियों को शपथ दिलाते हुए कहा, “मैं स्वच्छता के प्रति कटिबद्ध रहूँगा और इसके लिए समय दूंगा। मैं न तो गंदगी फैलाऊँगा और न दूसरों को फैलाने दूंगा।” हमारे राष्ट्रपिता ने साफ़-सुथरे और विकसित भारत का जो सपना देखा था, उसी को साकार करने के लिए इस अभियान का शुभारंभ किया गया।

Answered by harshitgarg51
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Answer:

प्रदूषण के कारण और निवारण

अथवा

प्रदूषण की समस्या

संकेत-बिंदु –

1.भूमिका

2.हमारा जीवन और पर्यावरण

3.पर्यावरण प्रदूषण के कारण

4.प्रदूषण के प्रकार और परिणाम

5.प्रदूषण रोकने के उपाय

6.उपसंहार

1.भूमिका – मानव और प्रकृति का साथ अनादिकाल से रहा है। वह अपनी आवश्यकताओं यहाँ तक कि अपना अस्तित्व बचाने के लिए प्रकृति पर निर्भर रहा है। मानव ने ज्यों-ज्यों स यता की ओर कदम बढ़ाए, त्यों-त्यों उसकी ज़रुरतें बढ़ती गईं। इन आवश्यकतों को पूरी करने के लिए उसने प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ शुरु कर दी, जिसका दुष्परिणाम प्रदूषण के रूप में सामने आया। आज प्रदूषण किसी स्थान विशेष की समस्या न होकर वैश्विक समस्या बन गई है।

हमारा जीवन और पर्यावरण – मानव जीवन और पर्यावरण का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। जीवधारियों का जीवन उसके पर्यावरण पर निर्भर रहता है। जीव अपने पर्यावरण में जन्म लेता है, पलता-बढ़ता है और शक्ति, सामर्थ्य एवं अन्य विशेषताएँ अर्जित करता है। इसी तरह पर्यावरण की स्वच्छता या अस्वच्छता उसमें रहने वाले जीवधारियों पर निर्भर करती है। अत: जीवन और पर्यावरण का सहअस्तित्व अत्यावश्यक है।

पर्यावरण प्रदूषण के कारण – पर्यावरण प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारण है-प्राकृतिक संतुलन का तेज़ी से बिगड़ते जाना। इसके मूल में है-मनुष्य की स्वार्थपूर्ण गतिविधियाँ। मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अविवेकपूर्ण दोहन और दुरुपयोग करने लगा है। इससे सारा प्राकृतिक-तंत्र गड़बड़ हो गया। इससे वैश्विक ऊष्मीकरण का खतरा बढ़ गया है। अब तो प्रदूषण का हाल यह है कि शहरों में सरदी की ऋतु इतनी छोटी होती जा रही है कि यह कब आई, कब गई इसका पता ही नहीं चलता है।

प्रदूषण के प्रकार और परिणाम – हमारे पर्यावरण को बनाने में धरती, आकाश, वायु जल-पेड़-पौधों आदि का योगदान होता है। आज इनमें से लगभग हर एक प्रदूषण का शिकार बन चुका है। पर्यावरण के इन अंगों के आधार पर प्रदूषण के विभिन्न प्रकार माने जाते हैं, जैसे- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण आदि।

1. वायु प्रदूषण-जिस प्राणवायु के बिना जीवधारी कुछ मिनट भी जीवित नहीं रह सकते, वही सर्वाधिक विषैली एवं प्रदूषित

हो चुकी थी। इसका कारण वैज्ञानिक आविष्कार एवं बढ़ता औद्योगीकरण है। इसके अलावा धुआँ उगलते अनगिनत वाहनों में निकलने वाला जहरीला धुआँ भी वायु को विषैला बना रहा है। उसी वायु में साँस लेने से स्वाँसनली एवं फेफड़ों से संबंधित अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं जो व्यक्ति को असमय मौत के मुंह में ढकेल देती हैं।

2. जल प्रदूषण-औद्योगिक इकाइयों एवं कलकारखानों से निकलने वाले जहरीले रसायन वाले पानी जब नदी-झीलों एवं विभिन्न

जल स्रोतों में मिलते हैं तो निर्मल जल जहरीला एवं प्रदूषित हो जाता है। इसे बढ़ाने में घरों एवं नालों का गंदा पानी भी एक कारक है। इसके अलावा नदियों एवं जल स्रोतों के पास स्नान करना, कपड़े धोना, जानवरों को नहलाना, फूल-मालाएँ एवं मूर्तियाँ विसर्जित करने से जल प्रदूषित होता है, जिससे पेट संबंधी बीमारियाँ होती हैं।

3. ध्वनि प्रदूषण-सड़क पर दौड़ती गाड़ियों के हार्न की आवाजें आकाश में उड़ते विमान का शोर एवं कारखानों में मोटरों की

खटपट के कारण ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। ध्वनि प्रदूषण के कारण ऊँचा सुनने, उच्च रक्तचाप तथा हृदय संबंधी बीमारियाँ बढ़ी हैं।

4. मृदा प्रदूषण-खेतों में उर्वरक एवं रसायनों का प्रयोग, फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग, औद्योगिक कचरे तथा प्लास्टिक की __ थैलियाँ जैसे हानिकारक पदार्थों के ज़मीन में मिल जाने के कारण भूमि या मृदा प्रदूषण बढ़ रहा है। इस कारण ज़मीन की उर्वराशक्ति निरंतर घटती जा रही है।

प्रदूषण रोकने के उपाय – प्रदूषण रोकने के लिए सबसे पहले पेड़ों को कटने से बचाना चाहिए तथा अधिकाधिक पेड़ लगाने चाहिए। कल-कारखानों की चिमनियों को इतना ऊँचा उठाया जाना चाहिए कि इनकी दूषित हवा ऊपर निकल जाए। इनके कचरे को जल स्रोतों में मिलने से रोकने का भरपूर प्रबंध किया जाना चाहिए। घर के अपशिष्ट पदार्थों तथा पेड़ों की सूखी पत्तियों का उपयोग खाद बनाने में किया जाना चाहिए।

उपसंहार – प्रदूषण की समस्या विश्वव्यापी एवं जानलेवा समस्या है। इसे रोकने के लिए व्यक्तिगत प्रयास के अलावा सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। आइए इसे रोकने के लिए हम सब भी अपना योगदान दें।

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