koi samjha do ;(-_-):
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Answer:
छाँड़ि मन हरि बिमुखन को संग ।
जिनके संग कुबुधि उपजत है , परत भजन में भंग ॥१ ॥
कहा होत पय पान कराये, विष नहिं तजत भुजंग । कागहि कहा कपूर चुगाये , स्वान न्हवाये गंग ॥२ ॥
खर को कहा अरगजा लेपन , मरकट भूषन अंग ।गज को कहा न्हवाये सरिता , बहुरि धरै खहि छंग ॥३ ॥
पाहन पतित बान नहिं बेधत , रीतो करत निषंग ।सूरदास खल कारी कामरि , चढ़त न दूजो रंग ॥४ ॥
Explanation:
भावार्थ- ऐ मेरे मन ! तुम ईश्वर की भक्ति से विमुख ( दूर ) रहनेवाले लोगों की संगति छोड़ दो । ईश्वर की भक्ति से विमुख रहनेवाले लोगों की संगति में रहने से बुरी बुद्धि ( तामसी बुद्धि ) उत्पन्न होती है और भजन - ध्यान में बाधा पहुँचती है ॥१ ॥ साँप को दूध पिलाने से क्या लाभ , वह दूध पिलाये जाने पर भी विष का त्याग नहीं करता अर्थात् दूध पिलाये जाने पर भी दूध पिलानेवाले को डंसना नहीं छोड़ता । कौए को कपूर खिलाकर उसका मुख सुगंधित करने से क्या लाभ , वह फिर विष्ठा खाकर अपने मुख को दुर्गधित करेगा ही । कुत्ते को गंगा - स्नान कराने से क्या लाभ , गंगा - स्नान कराने पर भी उसके शरीर की दुर्गंध जानेवाली नहीं।।२ ।। गदहे के शरीर में अरगजा का लेपन करके उसके शरीर को सुगंधित करने से क्या लाभ , वह तो फिर धूल में लोट - पोट करेगा ही । बन्दर के शरीर में वस्त्र और गहने पहनाने से क्या लाभ , पीछे वह वस्त्रों को चीर - फाड़कर और गहनों को तोड़ - फोड़कर फेंकेगा ही । इसी प्रकार हाथी को किसी नदी में स्नान कराकर पवित्र करने से क्या लाभ , वह तो पीछे अपनी सूंड से मस्तक या शरीर पर धूल डालेगा ही ॥३ ॥ पत्थर पर वाण चलाते - चलाते कोई चाहे अपना तरकश खाली क्यों न कर डाले , पत्थर में छेद नहीं हो सकता । इसी प्रकार कोई दुष्ट को सुधारने के लिए उसे चाहे लाख उपदेश करे , उस उपदेश का उसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । अन्त में संत सूरदासजी कहते हैं कि दुष्ट काले कंबल की तरह होता है । जिस प्रकार काले कंबल पर दूसरा कोई रंग नहीं चढ़ पाता , उसी प्रकार दुष्ट पर अच्छी शिक्षा का कभी प्रभाव नहीं पड़ता ॥४ ॥ इति।