Economy, asked by riya636, 1 year ago

Krishi ki prakriya kya hai


Lakkie: English please.

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Answered by parijain3110
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Step # 1. जुताई (Tillage):

देशी हल, ट्रेक्टर अथवा मिट्टी पलटने वाले यंत्र से खेत की जताई की जाती है । जुताई में खेत की मिट्टी पलट दी जाती है अर्थात् नीचे की मिट्टी ऊपर आ जाती  है । जुताई से मिट्टी के बड़े-बड़े ढेले ऊपर आ जाते हैं । फसलों की अधिक पैदावार के लिए जुताई प्रथम चरण है।

बीजों का चयन:
बीजों की अंकुरण क्षमता भी 70-90 प्रतिशत होना चाहिए अर्थात् 100 बीज बोने पर 70-90 बीजों में अंकुरण होना चाहिए । विभिन्न फसलों की जीवन क्षमता अलग-अलग होती है । बीजों के रूप-रंग आकार तथा आकृति में समानता होनी चाहिए ।

Step # 2. बुआई (Sowing):
खेत (मिट्टी) की तैयारी तथा बीजों के चयन के बाद मिट्टी में बीजों को डालना बुआई कहलाता है । बुआई हेतु दुफन एवं सीडड्रिल नामक यंत्रों का प्रयोग किया जाता है । बुआई में उचित गहराई का ध्यान रखना चाहिए ।
अधिक गहराई पर बोये गए बीज नमी तथा वायु की कमी के कारण अंकुरित नहीं होते एवं कम गहराई पर बोये गए बीजों को पक्षियों द्वारा खाकर नष्ट कर दिया जाता है । पौधे एवं पंक्तियों की आपसी दूरी भी महत्वपूर्ण है ।  पास-पास बोने पर फसल घनी हो जाएगी तथा पौधों को पर्याप्त स्थान प्रकाश तथा भोजन नहीं मिल सकेगा दूसरी ओर यदि पौधे एवं पंक्ति की दूरी अधिक हो गई तो उपज पर प्रभाव पड़ता है ।
बीजों की बुआई दो विधियों द्वारा की जाती है:
1. सीधे खेत में बोना ।
2. नर्सरी से पौधरोपण द्वारा ।
Step # 3. खाद डालना (Mannuring):
मिट्टी से फसलों को खनिज पोषक तत्व मिलते हैं । यह पोषक तत्व फसल की वृद्धि के लिए आवश्यक हैं । खेत में अनेक बार फसल उगाने से मिट्टी के पोषक तत्वों में कमी आ जाती है । मिट्टी में पोषकों की पुन: पूर्ति के लिए खेतों में खाद डाली जाती है ।
खाद कार्बनिक पदार्थों का मिश्रण है । पौधों तथा जानवरों के अपशिष्ट जैसे: गोबर, बेकार शाक-सब्जियाँ, पौधे-पत्तियाँ तथा अन्य जैव अवशेष से प्राप्त कार्बनिक पदार्थ खाद कहलाते हैं ।  इन अपशिष्ट पदार्थों को एक गड्डे में एकत्रित करके मिट्टी से ढक दिया जाता है तथा सूक्ष्मजीव व्यर्थ पदार्थों को कार्बनिक पदार्थों में अपघटित कर देते हैं । इस प्रकार तैयार की हुई खाद कम्पोस्ट कहलाती है ।
Step # 4. सिंचाई (Irrigation):
पौधों को जीवित रहने के लिए जल की आवश्यकता होती है । फसल के उत्पादन के लिए जल अत्यधिक आवश्यक है । पौधों को जिन पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है वे पानी में घुलकर जड़ों द्वारा पौधों के विभिन्न भागों तक पहुंचते हैं । प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में भी जल एक महत्वपूर्ण घटक है ।वाष्पोत्सर्जन या उत्सवेदन द्वारा हुई जल की हानि की पूर्ति एवं खाद्य पदार्थों के स्थानान्तरण के लिए जल की आवश्यकता होती है । मृदा का ताप भी जल द्वारा नियंत्रित होता है । अच्छी फसल उत्पादन या अच्छी पैदावार के लिए फसलों को कृत्रिम रूप से पानी देना ही सिंचाई है । बुआई से पूर्व खेतों की सिंचाई की जाती है जिससे जुताई आसान हो जाती है ।
सिचाई के साधन:
कुओं, नदी, नहर, तालाब, झील आदि सिंचाई के प्रमुख स्रोत हैं ।
Step # 5. फसल की रक्षा (Plant Protection):
फसल की रक्षा से तात्पर्य विभिन्न फसलों को फलों को तथा संग्रहित अनाजों को हानि पहुँचाने वाले रोग कीट व अन्य हानिकारक जीवों तथा खरपतवारों को नष्ट या कम करना है Step # 6. फसल की कटाई (Harvesting):
फसल के पकने के बाद उत्पाद को काटने की विधि को कटाई कहते हैं । छोटे स्तर पर हँसिया से कटाई की जाती है जबकि बड़े स्तर पर मूवर, रीपर एवं कम्बाइन हार्वेस्टर से की जाती है । खरीफ की फसल जैसे: धान, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि की कटाई सितम्बर-अक्टूबर माह में की जाती है जबकि रबी की फसल जैसे: गेहूँ, चना, सरसों आदि की कटाई मार्च-अप्रैल माह में की जाती है ।
हमारे देश में कटाई के समय को उत्सव के रूप में मनाते हैं । हार्वेस्टर द्वारा कटाई होने पर खेत में पौधों के निचले भाग शेष रह जाते हैं इनको जलाना नहीं चाहिए क्योंकि इससे प्रदूषण फैलता है । इसलिए उन्हें खेत में ही जोत देना चाहिए । कटाई के बाद फसल को थ्रेसिंग विधि द्वारा दाना एवं भूसा अलग कर दिया जाता है


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