Krishna bhakti ke prachar prasaar ko aarbh krne mai chetannya aur bhallabh charya ko prerit krne mai kon sammlit nahi hai
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भारत की भूमि परम भाग्यशाली रही है कि यहाँ भगवान की दिव्य विभूतियों अवतरण समय-समय पर होता रहा है, शुद्धाद्वैत ब्रह्मवाद के महान् अचार्य और पुष्टि मार्ग के प्रर्वत्तक महाप्रभु श्री वल्लाभाचार्य का प्राकट्य भारत के धार्मिक, सांस्कृतिक इतिहास की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना है। श्री वल्लभाचार्यजी ने भारतीय दार्शनिक चिंतन को समन्वयात्मक दृष्टि प्रदान की, भारतीय धर्म-साधना को नया आयाम दिया तथा वैष्णव धर्म की कृष्ण-भक्ति धारा को अपूर्व विशिष्टता प्रदान की। आपके व्यक्तित्व, कृतित्व, सिद्धान्त और साधना-प्रणाली ने भारतीय जनमानस को बहुत गहराई तक प्रभावित किया है।
श्री वल्लभाचार्य जी के पूर्वज आन्ध्रप्रदेश में कृष्णा नदी के दक्षिण में स्थित काँकरवाड़ स्थान के निवासी थे। ये विष्णुस्वामी संप्रदाय के अनुयायी और गोपालकृष्ण के उपासक थे। गोपालमंत्र इनका दीक्षामंत्र था। यह परिवार परम धार्मिक था। इस परिवार में कई पीढि यों से वैदिक सोमयज्ञों की परम्परा चल रही थी। श्रीवल्लभाचार्य के पूर्वज यज्ञनारायण भट्ट ने अपने परिवार में सोमयज्ञ की परम्परा आरम्भ की। उन्हे भगवान् का यह वरदान मिला था कि सौ सोम यज्ञ पूर्ण होने पर मैं आपके परिवार में अवतार लूँगा इस वरदान के सफल होने की प्रतीक्षा में इस परिवार में पाँच पीडियों तक सोमयज्ञों की अखंड परम्परा चलती रही