Hindi, asked by Shanu2703, 1 year ago

krodh ka sakaratmak roop

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Answered by rahul1432
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क्रोध करना मनुष्य की एक स्वभाविक क्रिया है। जब कोई कार्य उसकी इच्छा के विरूद्ध हो या किसी ने उसका अहित किया हो, तो वह क्रोध करता है। क्रोध के माध्यम से वह अपने मन में व्याप्त गुस्से को बाहर निकलता है। इसके कुछ समय पश्चात वह शांत हो जाते हैं। परंतु उस क्षणिक समय में वह ऐसा अनर्थ कर बैठता है कि उसे जीवनभर का पछतावा मोल लेना पड़ता है। क्रोध करना बुरा नहीं है परन्तु उस समय अपने पर से नियंत्रण खो देना बुरा है। लोग क्रोध की स्थिति में किसी की जान तक ले लेते हैं। परन्तु जब उसे होश आता है, तो बात हाथ से बाहर हो जाती है। इसलिए प्राचीन काल से ही इसे मनुष्य का शत्रु माना जाता रहा है। इस स्थिति में मनुष्य की सोचने-समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है। वह पागलों के समान कार्य कर बैठता है। यही कारण है कि क्रोध न करने की सलाह दी जाती है। इसलिए हम कहेंगे कि क्रोध बिल्कुल उचित नहीं है।
Answered by Anonymous
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क्रोध का सकारात्मक रूप :-

क्रोध अर्थात गुस्सा । मनुष्य के कई भावों में से

एक भाव । यह भाव के विषय में अधिकतर

नकारात्मक बातें ही कही गई है । दरअसल ,

क्रोध ' एक नकारात्मक भाव ' है ।

गुस्सा या क्रोध कब आता है ? जब हम किसी

से उम्मीद रखते है कि वह यह कार्य, ऐसे ढंग

से कर देगा । उस उम्मीद के टूट जाने पर हमें

क्रोध होता है । सरल शब्दों में कहें तो जब

कोई कार्य हमारे अनुकूल नहीं होता , या कोई

कार्य जो हमें पसंद नहीं होता तब ' क्रोध '

जन्म लेता है । श्रीम्भगवद्गीता में क्रोध ( उप्तन्न) के

विषय में उल्लेख मिलता है ।

" विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुष की उन

विषयों में आसक्त्ति हो जाती है, आसक्त्ति से उन

विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में

विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है।"

क्रोध के सकारात्मक रूप पर बात करें तो ,

' क्रोधित होना ' कहीं कहीं सही भी है । गुस्से

को जाहिर न करना परेशानी को बढ़ाती है ।

गुस्से को , क्रोध को जाहिर करने के पश्चात '

हल्का ' महसूस होता है। वहीं दूसरी ओर गुस्से

को गलत ढंग से व्यक्त करना भी परेशानियों

को बढ़ाता है। अतः क्रोधित होना सही है ,

परन्तु साथ ही हमें इस बात को ध्यान में रखना

चाहिए कि , क्रोध को व्यक्त हम सही से करें ।

वस्तुत: " काम, क्रोध तथा लोभ — ये तीन

प्रकार केनरक के द्वार आत्मा का नाश करने

वाले अर्थात् उसको अधोगति में ले जाने वाले

हैं ।अतएव इन तीनों को त्याग देना चाहिये।"

- श्रीम्भगवद्गीता

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