KRS Dam information in Hindi
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कृष्णराज सागर बाँध, मैसूर
Krishnaraja Sagar Dam, Mysore
कृष्णराज सागर बाँध कर्नाटक में स्थित है। यह मैसूर नगर से 12 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इस बाँध का निर्माण वर्ष 1932 में किया गया था। बाँध को 'के. आर. एस. बाँध' भी कहा जाता है। इससे निकाली गई नहरें बाँध के आसपास की लगभग 92000 एकड़ भूमि की सिंचाई के लिए उपयोगी हैं।
इस बाँध का निर्माण कावेरी नदी पर किया गया है। इसकी ऊँचाई लगभग 130 फुट है।
कृष्णराज सागर बाँध भारत की आज़ादी से पहले की सिविल इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना है।
बाँध की लंबाई 8600 फीट, ऊँचाई 130 फीट और क्षेत्रफल 130 वर्ग कि.मी. है।
इसके उत्तरी कोने पर संगीतमय फ़व्वारे हैं। 'वृंदावनगार्डन' नाम के मनोहर बगीचे बाँध के ठीक नीचे स्थित हैं।
कृष्णराज सागर बाँध का नक़्शा अपने समय के विख्यात अभियन्ता श्री एम. विश्वेश्वरैया ने बनाया था और इसका निर्माण कृष्णराज वुडेयार चतुर्थ के शासन काल में हुआ।
यहाँ एक छोटा-सा तालाब भी हैं, जहाँ नाव के द्वारा बाँध के उत्तरी और दक्षिणी किनारों के बीच की दूरी तय की जाती है।
इसमें हेमावती तथा लक्ष्मणतीर्था नदियाँ गिरती हैं, जिनसे निकाली गई कई नहरें जलाशय के आसपास की 92000 एकड़ भूमि की सिंचाई के लिये उपयोगी है।
कृष्णराजसागर बाँध पर जल विद्युत भी उत्पन्न की जाती है और इसी से बंगलोर नगर को पानी पहुँचाया जाता है।
इसके पास कावेरी नदी के बाएँ तट पर 'वृंदावन' नामक गार्डन है, जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
जिस स्थान पर कावेरी नदी जलाशय में प्रेवश करती हैं, वहाँ कृष्णराजनगर नामक छोटा क़स्बा है, जो मिट्टी के सुंदर बर्तनों के गृह उद्योग के लिये प्रसिद्ध है।
कृष्ण राजा सागर बाँध
Explanation:
कृष्ण राजा सागर, जिसे केआरएस के नाम से भी जाना जाता है, एक झील और बाँध है। ये भारतीय राज्य कर्नाटक में कृष्णराजसागर की बस्ती के निकट स्थित हैं।
मैसूर के कृष्ण राजा वाडियार चतुर्थ महाराज ने इस बाँध का निर्माण राज्य में अकाल के दौरान किया । इसका निर्माण एक ऐसे समय में किया गया जब राज्य की वित्तीय स्थिति भी काफी बिगड़ी हुई थी। एम विश्वेश्वरैया ने इस बाँध का प्रारूप तैयार किया।
नवंबर 1911 में इस बाँध का निर्माण कार्य शुरू हुआ और तब इसमें 10,000 श्रमिक कार्यरत थे। सीमेंट के स्थान पर सरकी के रूप में जाना जाने वाला मोर्टार का इस्तेमाल किया गया, क्योंकि उस समय भारत में सीमेंट का निर्माण नहीं किया जाता था ।
इस समय सीमेंट आयात राज्य के लिए महंगा साबित होता था। सन 1931 में निर्माण पूरा होने तक, लगभग 5,000 से 10,000 लोगों ने इस परियोजना के चलते अपने घरों को खो दिया था।
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