kutiya me raajbhavan kavita ka aashay likhiye
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कुटिया में राजभवन से सीताजी का आशय हैं कि उनकी कुटिया का सौंदर्य राजभवन के जैसा ही है जहां पर उनके प्राणपति स्वयं श्री राम राजा हैं और लक्ष्मण जी जो उनके देवर है वे सचिव तुल्य हैं | उनका मानना है कि उनकी कुटिया में धन के बड़े -बड़े खजाने फीके पड़ जाते हैं क्योंकि यहां पर उन्हें मुनियों का आशीर्वाद तथा प्रकृति का असीम सौन्दर्य तथा अनमोल प्रेम प्राप्त होता है।
वे कहती हैं कि जिस प्रकार एक राजा के डर से दो बैरी आपस में हिंसा बुलाकर रहते है उसी प्रकार इस वन में हिरण तथा सिंह अपनी-अपनी हिंसा बुलाकर एक साथ पानी पीते हैं | वे स्वयं वहां पर रानी जैसा जीवन जीने का आदर प्राप्त कर रही है क्योंकि प्रकृति नें उन्हें सारे सुख उपलब्ध करा दिए है ।
उस कुटिया में उनके गृहस्थ जीवन का शुभारंभ हुआ और जिस प्रकार एक रानी दासियों से सुरक्षित रहकर निर्भीक विचरण करती है उसी प्रकार वे भी उस वन में फल -फूलों से लदी डालियों तथा हरी -हरी पत्तियों से सुशोभित झाड़ियों के बीच निर्भीक विचरण करती है।
उनका मानना है कि इस अपार वन संपदा का भी वे श्रृंगार हेतु या अन्य प्रयोजन सिद्ध करने हेतु भरपूर प्रयोग बेरोकटोक कर सकती हैं । मुनि कन्याये उनकी सहेलियां है । एक पुत्री जिस प्रकार अपने पिता के संरक्षण में सुरक्षित रहती है उसी प्रकार उस वन में वे किसी रानी से कम नहीं अपितु अधिक सुरक्षित व वैभवशाली है अस्तु वे बड़भागिनी है और उन्होंने अपनी कुटिया को ही राजभवन के समान माना है।