Kya nirash hua jaye explain me please full lesson or some
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हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘क्या निराश हुआ जाए’ एक श्रेष्ठ निबंध है। इस पाठ के द्वारा लेखक देश में उपजी सामाजिक बुराइयों के साथ-साथ अच्छाइयों को भी उजागर करने के लिए कहते है। वे कहते है समाचार पत्रों को पढ़कर लगता है सच्चाई और ईमानदारी ख़त्म हो गई है। आज आदमी गुणी कम और दोषी अधिक दिख रहा है। आज लोगो की सच्चाई से आस्था डिगने लगी है। लेखक कहते है कि लोभ, मोह, काम-क्रोध आदि को शक्तिमान कर हार नहीं माननी चाहिए बल्कि उनका डट कर सामना करना चाहिए। आगे वे कहते है कि हमें किसी के हाथ की कठ पुतली नहीं बनना चाहिए। कानून और धर्म अलग-अलग हैं। परन्तु कुछ लोग कानून को धर्म से बड़ा मानते हैं।
समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जो बुराई को रस लेकर बताते हैं। बुराई में रस लेना बुरी बात है। लेखक के अनुसार सच्चाई आज भी दुनिया में है इसके कई उदहारण उन्होंने पाठ में दिया है।
जब भी लेखक समाचार-पत्रों को पढ़ते है, उनका मन उदास हो जाता है क्यूंकि समाचार-पत्रों में चालबाजी, डकैती, चोरी, चोरी से सीमा-पार माल ले जाने की क्रिया की खबरें छपती हैं। इस तरह के कर्म बहुत ही अधिक बढ़ गए है । अनैतिक आचरण, बुरा आचरण समाज में चारों तरफ फैला हुआ है। समाचार पत्र खोलकर देखिए तो आप इन सभी का जिक्र पाएँगे। ऐसा लगता है कि चारो-ओर बुराई ही बुराई है अच्छाई का कोई नाम ही नहीं है। एक-दूसरे को गलत ठहराना नजर आता है । ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है देश में कोई ईमानदार आदमी ही नहीं रह गया है, सिर्फ बुराई ही बची है। हर व्यक्ति कानून को अपने हाथ में लेकर बेईमानी और भ्रष्टाचार कर रहा है।
हर व्यक्ति सदेंह की दृष्टि से देखा जा रहा है। जो जितने ही ऊँचे पद पर हैं उनमें उतने ही अधिक दोष दिखाए जाते हैं। एक बहुत बडे़ आदमी ने मुझसे एक बार कहा था कि इस समय सुखी वही है जो कुछ नहीं करता।
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