Hindi, asked by upsales, 5 hours ago

ले चल माँझी मझधार मुझे , दे - दे बस अब पतवार मुझे इन लहरों के टकराने पर आता रह - रह कर प्यार मुझे ।मत रोक मुझे भयभीत न कर , मैं सदा कैंटीली राह चला ।पथ - पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला ।फिर कहाँ डरा पाएगा यह पगले जर्जर संसार मुझे ।इन लहरों के टकराने पर , आता रह - रह कर प्यार मुझे ।मैं हूँ अपने मन का राजा , इस पार रहूँ उस पार चलँ । मैं मस्त खिलाड़ी हूँ ऐसा जी चाहे जीतें हार चलँ । मैं हूँ अबाध , अविराम , अथक , बंधन मुझको स्वीकार नहीं । मैं नहीं अरे ऐसा राही , जो बेबस - सा मार चलें कब रोक सकी मुझको चितवन , मदमाते कजरारे घन कब लुभा सकी मुझको बरबस , मधु - मस्त फुहारें सावन की । जो मचल उठे अनजाने ही अरमान नहीं मेरे ऐसे राहों को समझा लेता हूँ सब बात सदा अपने मन की इन उठती - गिरती लहरों का कर लेने दो श्रृंगार मुझे , इन लहरों के टकराने पर आता रह - रह कर प्यार मुझे । प्र०ा माँझी कौन होता है ?



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Answered by NagayachG
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Answer:

लेखक द्वारा लिखा गया यह प्रसंग अपने प्रियतम या मित्र या किसी ऐसे व्यक्ति के लिए लिखा गया है जिसके पास होने से लेखिका को अपने अबोध अभिराम अथक और बिना बंधक रहने में अच्छा लगता है।

Answered by mandalshubhamkumar85
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Answer:

युग की प्राचीर से तात्पर्य जीवन में समय रूपी बाधाओं से है। कवि कहने का तात्पर्य यह है कि जो संकल्पवान व्यक्ति होता है। वह जीवन में आने वाली किसी भी तरह की बाधाओं व संकट से नहीं घबराता और वह इन बाधाओं से मुकाबला कर उस युग की प्राचीर को लांघ ही लेता है।

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