लिंग एवं langigta के भाव नियंत्रण की योग्यता विकास के लिए निर्देशन एवं परामर्श की आवश्यकता ko samjhaiye
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एवं langigta के भाव नियंत्रण की योग्यता विकास के लिए निर्देशन एवं परामर्श की आवश्यकता ko samjhaiye
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किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत समस्याओं एवं कठिनाइयों को दूर करने के लिये दी जाने वाली सहायता, सलाह और मार्गदर्शन, परामर्श (Counseling) अथवा उपबोधन कहलाता है। परामर्श देने वाले व्यक्ति को परामर्शदाता (काउन्सलर) कहते हैं। निर्देशन (गाइडेंस) के अन्तर्गत परामर्श एक आयोजित विशिष्ट सेवा है। यह एक सहयाेगी प्रक्रिया है। इसमें परामर्शदाता साक्षात्कार एवं प्रेक्षण के माध्यम से सेवार्थी के निकट जाता है उसे उसकी शक्ति व सीमाओं के बारे में उसे सही बोध कराता है।
सभी समाजों में परामर्श देने और परामर्श प्राप्त करने की परम्परा पायी जाती है। चाहे दो विकल्पों में एक चयन की समस्या हो, किसी भी प्रकार के भ्रम की स्थिति हो, अथवा मानसिक तनाव हो, परामर्श आवश्यक और अपरिहार्य हो जाता है। परामर्श में कम से कम दो व्यक्तियों की लिप्तता अवश्य होती है, एक परामर्शक या परामर्श दाता और दूसरा परामर्श प्राप्त करने वाला।
व्यक्ति अपनी निजी समस्याओं के समाधान के लिए परामर्श चाहता है। व्यक्तिगत समस्या शारीरिक, मानसिक, व्यवसाय सम्बन्धी तथा समाज सम्बन्धी हो सकती है जिसके लिए उसे परामर्शक की आवश्यकता होती है। परामर्श मूलतः पारस्परिक होता है। इसका आधार परम्परा विश्वास है। व्यक्ति परामर्श उसी से लेता है जिसमें उसका विश्वास होता है और यदि परामर्शक सच्चा, ईमानदार और सन्निष्ठ है तो वह उसी व्यक्ति को परामर्श देता है जिसे वह समझता है कि वह परामर्श को स्वीकार करेगा और यथा सम्भव इसका पालन करेगा। व्यावसायिक निर्देशन (प्रोफेशनल गाइडेंस) के क्षेत्र में प्रमुख योगदान करने वाले विख्यात लेखक ई॰ डब्ल्यू॰ मायस ने लिखा है कि परामर्श देना एक महान कला है इस प्रकार परामर्शक को बहुत ही सावधानी तथा सतर्कता से परामर्श देना चाहिए। परामर्शक को अनुभवी, सुधी, सजग और परिपक्व होना चाहिए जिसका लाभ प्रत्याशी को मिल सके।
समाज-गठन के आरम्भिक दिनों में परामर्श न तो व्यवस्थित था और न वैज्ञानिक। इसकी कोई प्रक्रिया नहीं थी। इसका कोई स्वरूप भी नहीं था। परामर्शक परामर्श देने के पूर्व किसी प्रकार की तैयारी भी नहीं करता था और न किसी निश्चित लक्ष्य को ध्यान में रख कर परामर्शेच्छु परामर्श की आकांक्षा करता था। समय के अनुसार परामर्श का स्वरूप भी बदलता गया। जिस प्रकार से विभिन्न शास्त्रों एवं विज्ञानों, में नवीन अवधारणा, प्रक्रिया तथा व्यवस्था का समावेश हुआ उसी प्रकार परामर्श भी उससे अछूता नहीं रहा है।
हैरमिन के अनुसार- परामर्श मनोपचारात्मक सम्बन्ध है जिसमें एक प्रार्थी एक सलाहकार से प्रत्यक्ष सहायता प्राप्त करता है या नकारात्मक भावनाओं को कम करने का अवसर और व्यक्तित्व में सकारात्मक वृद्धि के लिये मार्ग प्रशस्त होता है। मायर्स ने लिखा है- परामर्श से अभिप्राय दो व्यक्तियों के बीच सम्बन्ध है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को एक विशेष प्रकार की सहायता करता है। विलि एवं एण्ड्र ने कहा कि परामर्श पारस्परिक रूप से सीखने की प्रक्रिया है। इसमें दो व्यक्ति सम्मिलित होते है सहायता प्राप्त करने वाला और दूसरा प्रशिक्षित व्यक्ति जो प्रथम व्यक्ति की सहायता इस प्रकार करता है कि उसका अधिकतम विकास हो सकें। ब्रीवर ने परामर्श को बातचीत करना, विचार-विमर्श करना तथा मित्रतापूर्वक वार्तालाप करना बताया है।
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