Social Sciences, asked by sawl24501gmailcom, 21 days ago

लोग लोकतंत्र को क्यों अधिक पसंद करते डेढ़ सौ शब्दों में उतर दे​

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Answered by studysandhya808
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लोकतंत्र को पश्चिम में दुनिया की बेहतरी का सर्वोत्तम विकल्प बताया जाता है, लेकिन वास्तव में लोकतंत्र की राजनीतिक और व्यक्तिगत आज़ादी की ताक़त को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है.

प्रमुख पश्चिमी देश लोकतंत्र को राजनीतिक संघर्षों का समाधान मानने की मान्यता पर काम करते हैं. उनकी विदेश नीति का अंतिम लक्ष्य उन देशों में लोकतंत्र की स्थापना को बढ़ावा देना होता है, जिन्होंने लोकतंत्र के फ़ायदों का लाभ नहीं उठाया.

वे मध्यपूर्व की स्थितियां जानने के बावजूद लोकतंत्र की मान्यता से चिपके हुए हैं. हम इसके साथ सहानुभूति जता सकते हैं.

लोकतांत्रिक देश सामान्य तौर पर एक-दूसरे से युद्ध नहीं करते, अपनी सीमाओं के भीतर भी गृहयुद्ध जैसी स्थितियों का सामना नहीं करते.

जहां लोग अपनी मर्ज़ी से सरकार चुन सकते हैं, ऐसे माहौल में सुरक्षा एक मूल्य की तरह होती है और संघर्ष अराजक स्थिति में नहीं पहुंचता. वहां अलोकप्रिय सरकारों को नकार दिया जाता है और कोई हिंसा नहीं होती.

लोकतंत्र की सर्वोच्चता पर सवाल

इस वजह से लोकतंत्र की सर्वोच्चता पश्चिमी देशों की विदेश नीति का अहम हिस्सा होती है. अगर हम मुड़कर देखें, तो पाएंगे कि शीतयुद्ध को लोकतंत्र और संपूर्ण सत्तावादी शासन पद्धति के बीच संघर्ष के बतौर देखा जाता है, जिसमें लोकतंत्र विजयी हुआ है.

लोकतंत्र के कारण पहले कम्युनिस्ट शासन वाले देशों के लोगों को आज़ादी मिली. पहले जहां अत्याचार और दमन था, अब वहां लोकतंत्र, आज़ादी और मानवाधिकारों का आगमन हो गया.

अगर हम पश्चिमी देशों के राजनीतिज्ञों के शब्दों का अध्ययन करें, तो पाएंगे कि लोकतंत्र, आज़ादी और मानवाधिकार जैसे शब्द एक सांस में बोले जाते हैं और मान लिया जाता है कि यह सभी परिस्थितियों में एक समान रूप से लागू होती हैं. यह अधिकांश राजनीतिज्ञों को लिए शीतयुद्ध और सोवियत संघ के पतन से संदेश मिलता है.

मेरे दृष्टिकोण से ''सभी तरह के राजनीतिक और सामाजिक संघर्षों का एक ही समाधान है और उसका नाम लोकतंत्र है'', यह मान्यता ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों को नजऱअंदाज करती है.

लोकतंत्र राजनीतिक-सामाजिक परिस्थितियों और अन्य मजबूत संस्थाओं के बग़ैर संभव नहीं है.

व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानवाधिकार

जब हम यह मान लेते हैं कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा लोकतंत्र के साथ आती है, तो हम एक महत्वपूर्ण तथ्य अनदेखा करते हैं कि लोकतंत्र, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानवाधिकार तीनों तीन चीज़ें हैं. वे एक नहीं हैं. कुछ विशेष परिस्थितियों में तीनों की मौजूदगी एक साथ संभव है.

रूस में मानवाधिकारों की रक्षा के बग़ैर लोकतंत्र लागू किया गया था. 19वीं शताब्दी में ब्रिटेन में लोकतंत्र जैसी किसी चीज़ के आने के पहले मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई थी.

आज हम मध्यपूर्व के देश मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड जैसी पार्टियों को चुनाव में खड़े होते देखते हैं, जो चुनाव में मिली जीत को असहमित ख़त्म करने और ख़ास जीवन शैली को थोपने के मौक़े की तरह देखती है. जो वहां के अधिकांश नागरिकों के लिए सामान्य रुप से स्वीकार्य नहीं है.

ऐसी परिस्थिति में लोकतंत्र मानवाधिकरों की सुरक्षा के बजाय उसके लिए ख़तरा बन जाता है.

साम्यवादी शासन के अंतर्विरोध

मुझे 1980 में अपने दोस्तों और सहपाठियों से मुलाकात के दौरान कुछ मुद्दों से रूबरू होने का मौका मिला, जब वे कम्युनिस्ट देशों में विपक्षी विचारधारा का बीज बो रहे थे.

वे जनसेवा की भावना से भरे नागरिक थे, जो अपनी गतिविधियों से गिरफ़्तार होने और जेल जाने का ख़तरा मोल ले रहे थे. इसे हम और आप पूरी तरह से मासूमियत ही मानेंगे. वे माता-पिता के राजनीतिक प्रोफाइल देखकर शिक्षा से वंचित किए गए बच्चों के लिए स्कूल चला रहे थे.

वे उन लेखकों, छात्रों, संगीतज्ञों और कलाकारों के समूह की भी मदद कर रहे थे, जिनके कार्यों के प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई थी. वे दवा, बाइबिल, धार्मिक प्रतीकों और किताबों की तस्करी में शामिल हुए क्योंकि साम्यवादी शासन में परोपकार करने वाली संस्थाएं गैरक़ानूनी थी और धार्मिक संस्थाओं को कम्यूनिस्ट पार्टी नियंत्रित करती थी.

संपूर्ण सत्तावादी शासन व्यवस्था में लोकतांत्रिक चुनाव की जगह एक पार्टी वाली व्यवस्था अपनाई जाती है. यह नागरिक समाज और सरकार के बीच अंतर समाप्त कर देती है. कोई भी महत्वपूर्ण गतिविधि पार्टी नियंत्रण के परे नहीं होती.

पूर्वी यूरोप की परिस्थितियों का अध्ययन करने के बाद मैंने देखा कि राजनीतिक स्वतंत्रता विभिन्न संस्थाओं के नाज़ुक तंत्र पर निर्भर करती है. जिसे मेरे मित्र समझने और पुर्नजीवित करने की कोशिश में लगे थे.

Answered by rajpalmanjojgmailcom
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