लोग धर्म के प्रति संवेदनशील क्यों हैं ?
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आज जब हम अपने आस-पास की स्थिति को नजदीक से देखते हैं तो पाते हैं कि हम कितने असभ्य और असंवेदनशील हो गए हैं। सिर्फ हम अपने बारे में सोचते हैं और हमें अपनी चिंताएं हर वक्त सताती हैं। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि समाज के प्रति हमारी कुछ जिम्मेदारियां भी हैं। देश में ऐसा कोई बड़ा जन आंदोलन भी नहीं है, जो संवेदनहीनता के लिए जनता में जागृति लाए। राजनीतिक दल और नेता लोगों को वोट और नोट कबाड़ने से फुर्सत मिले, तब तो इन मनुष्य जीवन से जु़ड़े बुनियादी प्रश्नों पर कोई ठोस काम हो सके।
गत दिनों सोशल मीडिया पर एक तस्वीर और संदेश वायरल हुआ जिसमें एक गर्भवती महिला को किसी शादी में भारी-भरकम लाइट उठाए बड़ी तकलीफ के साथ चलते हुए दिखाया गया है। इसे देखकर आपका भी सिर शर्म से झुका होगा, आत्मा कराही होगी, खुद की उपलब्धियों पर शर्मिंदगी महसूस हुई होगी।
जीवन से खिलवाड़ करती एवं मनुष्य के प्रति मनुष्य के संवेदनहीन-जड़ होने की इन शर्मनाक एवं त्रासद घटनाओं के नाम पर आम से लेकर खास तक कोई भी चिंतित नहीं दिखाई दे रहा है, तो यह हमारी इंसानियत पर एक करारा तमाचा है। इस तरह समाज के संवेदनहीन होने के पीछे हमारा संस्कारों से पलायन और नैतिक मूल्यों के प्रति उदासीनता ही दोषी है।
हम आधुनिकता के चक्रव्यूह में फंसकर अपने रिश्तों, मर्यादाओं और नैतिक दायित्वों को भूल रहे हैं। समाज में निर्दयता और हैवानियत बढ़ रही है। ऐसे में समाज को संवेदनशील बनाने की जरूरत है। इस जरूरत को कैसे पूरा किया जाए, इस संबंध में समाजशास्त्रियों को सोचना होगा। अक्सर हम दुनिया में नैतिक एवं सभ्य होने का ढिंढोरा पीटते हैं, जबकि हमारे समाज की स्थितियां इसके विपरीत हैं, भयानक हैं।
जानते हैं जापान में यदि कोई गर्भवती महिला सड़क से गुजर जाती है तो लोग उसे तुरंत रास्ता दे देते हैं, उसके सम्मान में सिर से टोप उतार लेते हैं। वे जानते हैं कि यह स्त्री जापान का भविष्य अपने गर्भ में लेकर चल रही है। इसकी केयर करना हम सबकी जिम्मेदारी है। कौन जानता है यही बच्चा कल देश का बहुत बड़ा साहित्यकार, राजनेता, म्यूजिशियन, एक्टर, स्पोर्ट्सपर्सन बने जिससे कि देश पहचाना जाए।
कभी चार्ली चैपलिन, हिटलर, नेपोलियन, लेनिन, कैनेडी, लिंकन, मार्टिन लूथर किंग, महात्मा गांधी या अम्बेडकर भी ऐसे ही गर्भ के भीतर रहे होंगे। हमें गर्भ और गर्भवती स्त्री का सम्मान करना चाहिए जापानियों की तरह। बात केवल गर्भवती महिलाओं की नहीं है, बात उन लोगों की भी है, जो दिव्यांग है या सड़क दुर्घटना में सहायता के लिए पुकार रहे हैं।