लोग वाजश्रवा की आलोचना क्यों कर रहे थे?
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एक प्रतापी ऋषि थे जिनका नाम था उद्दालक ( वाजश्रवस) उनके एक विवेकी पुत्र भी था जिसका नाम था नचिकेता. ऋषि ने एक बार के अनुष्ठान किया जिसकी परंपरा ये थी की उसको करने वाले को अपना सर्वस्व दान करना पड़ता था. अनुष्ठान में ब्राह्मणो को भोज के पश्चात दान किया जाता था, ये सोच कर आस पास के और परिचित ब्राह्मण काफी खुश थे क्योंकि ऋषि के पास काफी सारी गाये थी.
पर जब अनुष्ठान समाप्त हुआ तो ऋषि ने अपनी गयो में से बाँझ और बीमार गाये ही दान में दी, ऋषि प्रतापी थे इसलिए किसी ने उनका विरोध नहीं किया पर ये खुसर फुसर नचिकेता के कान में पड़ी तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ. तब नचिकेता ने पिता से जाके पूछा की पिता जी कायदे से आप को सारी गाये दान में देनी थी पर आप ये बीमार गाये क्यों दे रहे है. इस पर ऋषि को गुस्सा आ गया और उन्होंने नचिकेता से कहा की ज्यादा कायदे की बात मत कर, तू मेरा पुत्र है तू भी मेरी सम्पति है तुझे भी दान में देदूँगा.
नचिकेता एक पल के लिए रुका और पिता के सम्मान के लिए उसने पिता से कहा ठीक है पिता जी आप मुझे भी दान दे दीजिये, बताइये आप किसको मेरा दान देंगे. ऋषि पहले कुछ न बोले पर जब नचिकेता ने हट किया तो क्रोध में उन्होंने कहा जा में तुझे यमराज को दान देता हूँ. ऋषि के ऐसा कहते ही आश्रम में सन्नाटा छा गया पर नचिकेता ने पिता की आज्ञा मानते हुए तुरंत यमपुरी की राह ली, हालाँकि पिता ने लाख समझाया और रोक पर वो पिता की आज्ञा और उनके सम्मान के लिए चल दिया.
खोजते हुए बालक यमपुरी पहुंचा जन्हा द्वारपालों ने उसे अंदर नहीं जाने दिया जब, नचिकेता ने मिलाने की इच्छा जताई तो उन्होंने कहा यमराज अभी यंहा नहीं है दो दिन बाद लौटेंगे. इस पर बालक वंही बैठ कर इन्तेजार करने लगा, दो दिन बाद जब यमराज आये तो बेटे की पितृ भक्ति देख कर प्रसन्न हुए और उससे तीन वरदान मांगने को कहा. नचिकेता ने वापसी पर पिता का प्यार, मुक्ति के लिए ज्ञान और जन्म मृत्यु के सार के तीन वार मांगे.
पिता की शान के लिए मौत को भी गले लगाने वाले ऐसे बालक का जीवन धन्य है.