लॉक डाउन के समय प्रवासियों की घर वापसी उचित है या अनुचित पर भाषण इन हिंदी
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Answer:लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे नकारात्मक प्रभावों की चर्चा शुरू हो गई है. लेकिन अर्थव्यवस्था का मतलब सिर्फ जीडीपी, सेंसेक्स, फॉरेन रिजर्व और इंटरेस्ट रेट नहीं है. जब भी अर्थव्यवस्था के संकट या दुर्दशा की बात होती है तो सबसे पहले याद आती है उन प्रवासी मज़दूरों की, जिन्हें लॉकडाउन के कारण शहर छोड़कर गांवों की ओर भागना पड़ा था.
यह सही है कि हम व्यक्तिगत तौर पर चाहे इसके दोषी नहीं हों. चाहे आप केंद्र सरकार को भी बिना किसी तैयारी के सिर्फ चार घंटे के नोटिस पर लॉकडाउन घोषित करने के बावजूद इस आधार पर दोषी ना मानना चाहें कि उसके पास कोई और चारा नहीं था लेकिन हममें अगर सामाजिक संवेदना है तो अपराध-भाव से पूरी तरह मुक्त होना काफी मुश्किल है.
और फिर सरकार तो सरकार है. चाहे केंद्र में हों या राज्यों में, चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो. इतने सारे अफसरों की फौज जो बहुत गर्व से सरदार पटेल को उद्धृत करते हुए अपने को भारत के प्रशासनिक ढांचे का स्टील-फ्रेम मानते हैं, और इतने अनुभवी नेताओं के होते हुए भी किसी के दिमाग में नहीं आया कि जब प्रधानमंत्री ये कहेंगे कि तीन हफ्ते आप अपने-अपने घरों में रहो तो इन प्रवासी मजदूरों को भी तो अपने ‘घर’ ही जाना होगा और वही वे कर रहे थे.
सफर
आखिर वही लोग तो ‘अपने घर’ जा रहे थे, जो शहरों में काम तो करते हैं, लेकिन जिन्हें शहरों ने अपनाया नहीं है. इन महानगरों में गरिमापूर्ण तरीके से रहने की जगह तो छोड़ ही दीजिये, उन्हें इतनी सी हमदर्दी और मुंह-ज़बानी मुहब्बत भी नहीं दी है कि उनके मन में ये भरोसा बनता कि यहाँ अपना घर ना सही, ये शहर और शहर वाले हमारा ध्यान रख लेंगे.
दिल्ली, मुंबई, बंगलुरू और देश भर के अन्य बड़े शहरों से पलायन कर रहे जिन प्रवासी मज़दूरों की तस्वीरें आपने देखी हैं, ये सब लोग असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिक थे. इनको उनके नियोक्ता ने या तो निर्माण स्थल (कंस्ट्रकशन साइट) पर ही जगह दे रखी थी या फिर ये अपने कार्य-स्थलों पर ही रहते थे. उनमें से कुछ लोग आसपास के स्लम या शहर की सीमा पर बसी बस्तियों में भी रह रहे होंगे.
Explanation:
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