लोक गीत है संगीत सीधे जनता के वाक्य सीधा कीजिए
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Answer: लोक गीत संगीत सीधे जनता के वाक्य है l
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लोकगीतों में लोकजीवन की अनंतता के दर्शन होते हैं । हमारे देश की संस्कृति और प्रकृति बड़ी अनूठी है । इसकी गोद में असंख्य दुर्लभ चीजों का समागम है । यहाँ अनेक प्रकार के पर्यों का सिलसिला लगा ही रहता है और इन उत्सवों में अपने – अपने प्रान्तों में अपनी – अपनी भाषाओं में गाये जाने वाले गीतों को लोकगीतों की श्रेणी में रखा जाता है ।
लोक संगीत या Folk Song से तात्पर्य है कि जो संगीत जनमानस के मन का रंजन करे , लोक + संगीत = लोकसंगीत । यह संगीत लोक जीवन से जुड़े आम मनुष्य का संगीत है । लोकगीतों के माध्यम से व्यक्ति अपने मन के अनछुए भावों की अभिव्यक्ति करने में सक्षम होता है वह अभिव्यक्ति , खुशी , व्यथा , विस्मय , आल्हाद , भक्ति और वात्सल्य किसी भी रूप की हो सकती है । इन लोकगीतों के माध्यम से सम्पूर्ण भारतवर्ष के निवासी अपने – अपने भावों , विचारों का आदान – प्रदान काफी समय से करते आये हैं । इससे हम सभी आपस में एक – दूसरे के विचारों से परिचित होते हैं और अपने ज्ञान का विकास करते हैं । इन पारंपरिक लोक संगीत /लोकगीतों को किसी भी जगह गाया जा सकता है । गाने के साथ नाच की भी काफी पुरानी प्रथा है । उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ से लेकर राजधानी दिल्ली के रास्ते तक अनेक कामकाजी महिलाएं प्रतिदिन एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते हुए ट्रेन की महिला बोगी में ही इन लोकगीतों को गाते हुए अपना सफर पूरा करती हैं । कभी इन गीतों को गाते – गाते वे उसकी ताल , लय , स्वर और शब्दों में इतना भाव – विभोर हो जाती हैं कि उनका पैर नाचने को उठ जाता है और कुछ तो नाचना शुरू भी कर देती हैं । इनके यह गीत पारम्परिक होते हैं जो अन्य जगहों पर गाये जाने वाले गीतों की अपेक्षा काफी भिन्न होते हैं । इन गीतों के साथ यह कभी – कभी मंजीरा भी बजाती हैं इस तरह की प्रक्रिया अक्सर होती है इससे उनका समय भी आसानी से कट जाता है और एक दूसरे के गीत भी सीखने को मिल जाते हैं जिससे मन भी प्रसन्न रहता है ।कुछ पारम्परिक लोकगीतों को दो प्रकार में बाँटा जा रहा है । इनमें स्त्रियों की मनोदशा का वर्णन भिन्न – भिन्न रूप से प्राप्त होता है । 1. गाने के पारम्परिक लोकगीत । 2. गाने और नाच दोनों के लोकगीत । 1. गाने के पारम्परिक लोकगीत ।अब पहले वर्ग के लोकगीतों पर प्रकाश डाला जा रहा है । उदाहरणार्थ नीचे उत्तर प्रदेश के कुछ पारम्परिक लोकगीतों का वर्णन दृष्टव्य है —देखो स्वयंवर बहार , बहार सियाप्यारी । 1. रंगभूमि की रचना है सुन्दर । देखो श्री आँखें पसार , पसार सियाप्यारी देखो स्वयंवर बहार , बहार सियाप्यारी ।2. देश – देश के राजा आये बैठे । बैठे हैं कौशल कुमार सियाप्यारी देखो स्वयंवर बहार , बहार सियाप्यारी ।स्वरों की भाँति शब्द भी लोकगीतों में इतना परिमार्जित , श्रुतिमधुर एवं मार्मिक स्वरूप ले लेते हैं कि कृत्रिमता तो उनमें नाम को नहीं मिलती । इसी प्रकार लोकगीतों की अपनी सार्वभौम विशेषतायें हैं ; जैसे – पुनरावृत्ति , प्रश्नोत्तर प्रणाली , टेक आदि जिनसे गीत को कंठस्थ करने में , भावाभिव्यंजना में तथा गीत के विस्तार में सुविधा होती है । लोकसंगीत में उलट – चाल बदलने की तथा टेक उठाने की क्रिया बहुत मनोरंजक होती है । जुगलबंदी भी रहती है तथा गायन का चरमोत्कर्ष करने का अपना एक विशेष ढंग रहता है । लोकगीतों में लोकजीवन की अनंतता के दर्शन होते हैं । उल्लेखनीय है कि लोकगीतों में , तत्कालीन सभ्यता एवं संस्कृति का प्रभाव भी परिलक्षित होता है । लोकगीतों का गाया जाना एक सहज बात है इन्हें गाने से हमें अपने देश की संस्कृति के विस्तार का परिचय मिलता है । इन लोकगीतों के माध्यम से आम आदमी खुले मन से एक दूसरे के ऊपर छींटाकशी करते हुये भी अपने मनोभावों | को सहज रूप से व्यक्त कर लेता है । साथ ही लोकगीतों से हमें एक दूसरे की संस्कृति एवं अलग – अलग प्रान्तों की भिन्न – भिन्न चीजों को सीखना चाहिए । आपसी मनमुटाव दूर करके परस्पर मिलकर एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए ।
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