लोक कथा ओर लोक गाथा में अंतर स्पष्ट कीजिए
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लोकगाथा या कथात्मक गीत, अंग्रेजी में 'बैलेड' (Ballad) शब्द से अभिहित हैं। इस की व्युत्पत्ति लैटिन के 'वेप्लेर' शब्द से है जिसका अर्थ है 'नृत्य करना'। कालांतर में इसका प्रयोग केवल लोकगाथाओं के लिए किया जाने लगा। अंग्रेजी साहित्यकार इसकी ओर अधिक आकृष्ट हुए और यह अंग्रेजी साहित्य का लोकप्रिय काव्यरूप ही बन गया।
लोकगाथा की परिभाषा करते हुए विभिन्न विद्वानों ने भिन्न भिन्न विचार प्रकट किए हैं। किंतु परिभाषाओं में कुछ सर्वसामान्य तत्व विद्यमान हैं। इस विषय में कुछ प्रमुख विद्वानों के विचार ये हैं -
जी.एन. किटरेज ने लोकगाथा को कथात्मक गीत अथवा गीतकथा कहा है। फ्रैंक सिजविक लोकगाथा को सरल वर्णनात्मक गीत मानते हैं जो लोकमात्र की संपत्ति होती है और जिसका प्रसार मौखिक रूप से होता है। प्रो.एफ.बी. गुमेर ने इनकी विस्तृत चर्चा की है। उनके अनुसार लोकगाथा गाने के लिए लिखी गई ऐसी कविता है जो सामग्री की दृष्टि से प्राय: व्यक्तिशून्य रहती है और संभवत: उद्भव की दृष्टि से सामुदायिक नृत्यों से संबद्ध रहती है पर इसमें मौखिक परंपरा ही प्रधान है। डा. मेर लोकगाथा को छोटे छोटे पदों में रची कविता मानते हैं जिसमें कोई लोकप्रिय कथा विस्तार से कही गई हो। लूसी पौंड लोकगाथा को एक साधारण कथात्मक गीत मानते और इसकी उत्पत्ति को संदिग्ध बताते हैं।
तात्पर्य यह कि लोकगाथाओं में गीतात्मकता अनिवार्य तत्व हैं। कथानक प्रभावशाली और विस्तृत होता है। पर वह व्यक्तित्वविहीन होती हैं अर्थात् उनके रचयिताओं का पता नहीं होता। ये समाज के किसी वर्ग और व्यक्ति विशेष से संबद्ध नहीं हैं अपितु, संपूर्ण समाज की धरोहर हैं। इनका उद्भव जनसाधारण की मौखिक परंपरा से होता है। काव्यकला के सौंदर्य और गुणों का इनमें अभाव रहता है।
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