" लॉकडाउन के कारण बढ़ी बेरोजगारी" विषय पर एक फीचर लिखिए
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हम ये नहीं जानते कि कोरोनावायरस से पैदा स्वास्थ्य-संकट कितना गहन होगा और देश इससे कैसे निपटेगा लेकिन हम ये जरुर जानते हैं कि बेरोजगारी का संकट अभी ही सिर चढ़कर बोल रहा है. लोगों के जीवन और जीविका को बचाने के लिए सरकार को जल्दी ही लोक-कल्याण के मोर्चे पर कुछ वैसा करना पड़ेगा.
योगेंद्र यादव
8 April, 2020
दिल्ली के आश्रयघर के बाहर खाने के इंतज़ार में खड़े बेघर प्रवासी मजदूर | मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
कोविड-19 का चढ़ता हुआ ग्राफ किस ऊंचाई पर पहुंचकर दम तोड़ेगा, ये साफ होने में तो अभी थोड़ा वक्त लगेगा लेकिन राष्ट्रव्यापी तालाबंदी ने नौकरियों का कितना नुकसान किया है इसे लेकर पहला आकलन आने के साथ तस्वीर बहुत कुछ साफ हो चली है. नौकरियों के नुकसान के आंकड़े बड़े भयावह हैं. शायद, दुनिया में ऐसा नुकसान पहली बार देखने को मिल रहा है. पिछले दो हफ्तों में देश में जितने लोगों ने रोजगार गंवाये हैं, वैसा देश के आर्थिक इतिहास में अब तक देखने में नहीं आया. रोजगार के मोर्चे पर अनिश्चितता झेल रहे लोगों की तादाद आज भारत में रुस की आबादी जितनी हो सकती है.
बेशक हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जिसके बारे में पहले से सोच पाना तक मुश्किल था तो भी रोजगार के मोर्चे पर जो हालात हैं, वे ऐसे समय के लिहाज से भी अप्रत्याशित कहे जायेंगे. आइए, रोजगार के मोर्चे पर जो हालात हैं उन्हें हम एक-एक कर समझने की कोशिश करें.
पहले उन आंकड़ों पर गौर करते हैं जो सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इकोनॉमी (सीएमआइई) ने जारी किये हैं. सीएमआइई के ये आंकड़े आपको बेरोजगारी की दशा को जानने के बाबत हुए सर्वेक्षण अनएम्पलायमेंट ट्रैकर सर्वे में मिल जायेंगे. ये अपनी तरह का अनूठा सर्वेक्षण है जिसमें दैनिक, मासिक तथा तिमाही अवधि के बेरोजगारी के आंकड़े एकत्र किये जाते हैं. सीएमआइई अपने उपभोक्ता सर्वेक्षण के लिए रोजाना रैंडम रीति से चुने हुए 3500 लोगों का साक्षात्कार लेता है. लॉकडाउन के बाद, बाकी चीजों की तरह सर्वेक्षण भी बाधित हुआ. मार्च माह के आखिरी हफ्ते में सीएमआइई 2289 लोगों का ही साक्षात्कार ले पाया. लेकिन इस आंकड़ों को जारी नहीं किया गया क्योंकि सैम्पल (नमूना) बहुत ही छोटा था और मार्च का पिछला हफ्ता अपने स्वभाव में भी असामान्य की श्रेणी में आयेगा. मौका-मुआयना आधारित सर्वेक्षण को दोहरा पाना भी संभव नहीं था. ऐसे में सीएमआइई के फील्ड स्टॉफ ने 5 अप्रैल के दिन खत्म होने वाले हफ्ते के लिए 9429 लोगों से टेलीफोन पर साक्षात्कार लिये. ये सैम्पल भी छोटा ही कहा जायेगा तो भी इतना छोटा नहीं कि उससे शहरी/ग्रामीण तथा वर्गवार स्थितियों का आकलन नहीं किया जा सके. टेलीफोन के सहारे किये गये इस सर्वेक्षण के नतीजे पिछले हफ्ते के सर्वेक्षण से बहुत भिन्न नहीं थे. सो, बहुत सोच-विचार और सत्यापन के बाद सीएमआइई ने इस सोमवार को अपने पहले चरण के आंकड़े और विश्लेषण सार्वजनिक जनपद में लोगों के सामने रख दिये हैं.
आइए, अब जरा आंकड़ों पर गौर कर लें. आप ऐसे समझिए कि सीएमआइई का हाल का सर्वेक्षण अपनी तकनीकी शब्दावली के पीछे कोई भयावह बम छिपाये हुए है. सीएमआइई के मुख्य कार्याधिशासी तथा निदेशक महेश व्यास का कहना है, ‘इस हफ्ते बेरोजगारी की दर 23.4 प्रतिशत, श्रम-बल की प्रतिभागिता दर 36 प्रतिशत तथा रोजगार की दर 27.7 प्रतिशत है.’ मतलब, नौकरियों का सीधे-सीधे 20 प्रतिशत का नुकसान हुआ है और इतनी बड़ी तादाद में नौकरियों का खत्म होना किसी भी देश के लिए बड़ी बुरी खबर है. आंकड़े से निकलकर आती सबसे बुरी बात तो ये है कि जिस उम्र को काम-धंधे की उम्र माना जाता है, उस आयु-वर्ग के मात्र 27.7 प्रतिशत लोग ही किसी ना किसी रोजगार में लगे हैं.
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अब जरा आंकड़ों को सीधा-सरल बनाकर समझें. फिलहाल भारत की आबादी है लगभग 138 करोड़. इस आबादी में लगभग 103 करोड़ लोग 15 साल या इससे ज्यादा उम्र के हैं यानि उन्हें उस आयु-वर्ग का माना जा सकता है जिसमें लोग काम-धंधे में लगे होते हैं. अब जरा रोजगार की एक व्यापक परिभाषा कर लें. मान लें कि किसी भी किस्म का ऐसा काम जिसमें कुछ आय-अर्जन होता है चाहे वो काम अर्थव्यवस्था के संगठित क्षेत्र में हासिल हो या फिर असंगठित क्षेत्र में, दिहाड़ी का काम हो, नियमित वेतन का या फिर स्वरोजगार का— उसे हम यहां रोजगार कह रहे हैं. अगर रोजगार की ऐसी परिभाषा लेकर चलें तो कोरोना-काल तथा तालाबंदी से पहले यानि फरवरी 2020 में भारत में लगभग 40 करोड़ (40.4 करोड़) लोगों को रोजगार हासिल था. ऐसा सीएमआइई की तत्कालीन रिपोर्ट में लिखा है. तालाबंदी से तुरंत पहले के वक्त में भारत में बेरोजगार लोगों की तादाद रिपोर्ट के मुताबिक 3.4 करोड़ थी.
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lockdown ke karaaan kai logo n apni naukri kho di logo ne unhe kaam se nikalna suru kar diya
Rahul Gandhi
khatam bye bye tata goodbye gaya