लॉकडाउन के दौरान पलायन करते हुए प्रवासी मजदूर विषय पर दृश्य लेखन लिखिए इन हिंदी
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शहरों की तंग गलियों के अपने अंधेरे कमरों से निकलकर सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गांव के घरों की ओर पैदल ही निकल पड़े लोगों में से कितनों ने सफर के बीच ही अपना दम तोड़ दिया, इसकी कोई आधिकारिक संक्चया तो उपलब्ध नहीं है, पर विभिन्न रिर्पोटें कम से कम 20 मौतों की आशंका जताती हैं. यह आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा हो सकता है. डरे, भूखे और हताश ये प्रवासी श्रमिक खुद को अपनी सरकारों की ओर से पूरी तरह बदहाल छोड़ दिए महसूस कर रहे हैं.
अपने बच्चों और थोड़े-बहुत सामान के साथ चप्पल पहने सड़कों पर पैदल चलते लोगों के हुजूम का दृश्य दुनिया भर में देखा गया. उनके पास कई दिनों की अपनी यात्रा के लिए खाने का पर्याप्त सामान भी नहीं है. अधिकतर को बीच में ही रोक लिया जा रहा है और शिविरों में रखा जा रहा है, अब केंद्र ने राज्यों से कहा है कि वे अपनी सीमाओं को सील कर दें.
देश में 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के दिन, शाम 5 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर कोविड-19 के विरुद्ध कथित युद्ध में मोर्चा संभाल रहे लोगों के सम्मान में दिखावटी-उत्सव में बर्तन पीटकर कृतज्ञता जताई थी
जिस देश की बड़ी आबादी रोज कमाती है तो रोज खा पाती है, उसे बिना किसी पूर्व तैयारी के तीन हफ्तों के लिए पूरी तरह घरों में बंद हो जाने के फरमान सुना देने के फैसले से हुए नुक्सान को कम करने के लिए राज्य और केंद्र, दोनों से बहुत समन्वय के साथ काम करने की जरूरत होगी. विश्व बैंक को अंदेशा है कि कोरोना लाखों लोगों को गरीबी में धकेल देगा. इनमें से अधिकांश भारत में होंगे.