लोकगीत अपनी लोच, ताज़गी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संग
लोकगीत सीधे जनता के संगीत है। घर, गाँव और नगर की जनता के से
लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर
सदा से ये गाए जाते रहे हैं और इनके रचनेवाले भी अधिकतर गाँव
स्त्रियों ने भी इनकी रचना में विशेष भाग लिया है। ये गीत बाजों की
या साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाए
एक समय था जब शास्त्रीय संगीत के सामने
इनको हेय समझा जाता था। अभी हाल तक इनकी
बड़ी उपेक्षा की जाती थी। पर इधर साधारण
जनता की ओर जो लोगों की नज़र फिरी है तो
साहित्य और कला के क्षेत्र में भी परिवर्तन हुआ
नोक साहित्य
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