लोकगीत पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
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पाठ का सार (सारांश)
पाठ का सार (सारांश)लोकगीत लोकव्यवहार, स्थानीयता, ग्राम्य जीवन की सुन्दरता आदि गुणों से ओत-प्रोत होते हैं। इनकी पूँज देश के हर कोने में सुनाई देती है। ये लोकगीत विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं। पुरुषों और स्त्रियों के अलग-अलग तथा एक साथ गाए जाने वाले लोकगीतों की तो छटा ही कुछ और होती है!
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हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है | मनोरंजन की दुनिया
में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है। गीत - संगीत के बिना हमारा मुन्लोकगीत अपनी लोच,ताजगी और लोक प्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न है । लोकगीत सीधे जनता का संगीत है। ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत है इनके लिए साधना की जरूरत नहीं होती त्यौहारों और विशेष अवसरों पर यो गाये जाते हैं।
स्त्री और पुरूष दोनों ही इनकी रचनाओं में भाग लिये है । ये गीत बाजा. ढोलक, करताल, झाँझ और बासुरी आदि की मदद से गाये जाते हैं । लोकगीतों के कई प्रकार हैं । इनुका एक प्रकार बड़ा ही ओजस्वी और
सजीव है। यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है। मध्यप्रदेश, दक्कन और
छोटा नागपुर में ये फैलै हुए हैं। पहाडियों के अपने - अपने गीत हैं। वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं । सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मीर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रेदश के पूरबी जिलों में गाये जाते हैं ।
बाउल और भतियाली बंगला के लोकगीत हैं। पंजाब में महिया गायी जाती है। राजस्थानी में ढोला मारू आदि गीत गाते हैं । भोजपुर में बिदेसिया का प्रचार हुआ है।
इन गीतों में अधिकतर रसिकप्रियों और प्रियाओं की बात रहती हैं । इन गीतों में करूण और बिरह का रस बरसता है ।
जंगली जातियों में भी लोकगीत गाये जाते हैं। एक दूसरे के जवाब के रूप
में दल बाँधकर ये गाये जाते हैं। आल्हा एक लोकप्रिय गाना है । गाँवों और नगरों में गायिकाएँ होती हैं। स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाते
हैं। उनके गाने के साथ नाच का पुट भी होता है ।