लोकगीत सहज संप्रेष्य क्यों होते हैं?
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लोकगीत सहज संप्रेष्य इसलिए होते हैं, क्योंकि लोकगीत लोकमानस यानी स्थानीय जनमानस की अपनी भाषा में होते हैं। लोक गीतों को सुनने से स्थानीय लोगों को अपनी मिट्टी से जुड़ाव का एहसास होता है, वह उन्हें अपने गाँव के जीवन से परिचित कराते हैं।
लोकगीतों में जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, वह उसी क्षेत्र की आंचलिक भाषा होती है, जो क्षेत्र के लोगों में बहुतायत से बोली जाती हैष इस कारण लोकगीत हर किसी की समझ में आसानी से आ जाते हैं और उनका संप्रेषण क्षेत्र व्यापक हो जाता है।
लोक गीतों के साथ जो वाद्य यंत्र बजाए जाते हैं, वह भी अत्यंत सरल और देसी वाद्य होते हैं। अक्सर लोकगीतों में स्थानीय घटनाओं और प्रसंगों आदि का वर्णन होता है, इससे लोगों में रोचकता जागृत होती है। लोक गीतों को गाने के लिए कोई विशेष कला या शिक्षा की आवश्यकता नहीं होती। इसे एक आम आदमी भी गा लेता है, इस कारण इनका क्षेत्र व्यापक हो जाता है और अपनी सरल-सहज भाषा शैली के कारण यह सहज संप्रेष्य हो जाते हैं।
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वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में है। इनका संबंध देहात की जनता से है। बड़ी जान होती है इनमें। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मिर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के पूरबी और बिहार के पश्चिमी जिलों में गाए जाते हैं।