Hindi, asked by lsingh0367, 6 hours ago

लोकतंत्र की भावना प्रकट करने वाले समाचार या पत्रिकाओं से एकत्र कीजिए 197​

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Answered by ajitdhanshri1234
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स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान  पत्रकारिता को एक मिशन बनाकर सहभागी के रूप में अपनाया गया था। स्वतन्त्रता के पश्चात भी पत्रकारिता को व्यावसायिकता से जोड़कर नहीं देखा गया, किन्तु वैश्वीकरण, औद्योगीकरण के इस दौर में पत्रकारिता को व्यवसाय बनाकर प्रस्तुत किया गया। इस कारण से देश के बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों में करोड़ों-अरबों की धनराशि लगाकर इसमें अपना सशक्त हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। पत्रकारिता के व्यवसायीकरण ने इसके उद्देश्यों को, इसकी प्रकृति को बदलकर रख दिया। इस बदलाव को हाल के वर्षों में भली-भांति देखा-महसूस भी किया गया। सामाजिक सरोकारों से विहीन, मानवीय मूल्यों से रहित, टीआरपी की अंधी लालसा लिए मीडिया ने समाचारों के स्थान पर मसाले को प्रस्तुत करना शुरू किया। जनता से जुड़ने के स्थान पर आर्थिक मूल्यों से, आर्थिक हितों से नाता बनाये रखने में विश्वास किया। इसको मात्र एक-दो उदाहरणों के रूप में देखा जा सकता है।

मीडिया समूह से जुड़े लोगों में, पत्रकारिता क्षेत्र से सम्बन्ध रखने वालों में एक प्रकार की अजब सी अकड़, अजब सी अहंकारी प्रवृत्ति देखने को मिलती है। लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ से रूप में ख्याति प्राप्त इस समूह ने अपनी समस्त अकड़, अपनी समस्त गरिमा, अपना समस्त अहं उस समय सड़कों पर बिछा दिया था जिस समय बिग बी अमिताभ बच्चन के बेटे अभिषेक का विवाह-समारोह चल रहा था। बारम्बार आमंत्रित करने पर भी सौ-सौ नखरे दिखाने वाले सम्पादक, पत्रकार बिना बुलाये दिन-रात बिग बी के घर के बाहर सड़क पर डेरा डाले बैठे रहे। खुद को सामाजिक जागरूकता से जोड़ने वाले, मानवीय संवेदनाओं की रक्षा करने वाला बताने वाले मीडिया ने अपनी समस्त हदों को, अपनी समस्त मानवीयता को उस समय ताक पर रख दिया जिस समय हमारे जांबाज अपनी-अपनी जान को जोखिम में डालकर मुम्बई हमले के आतंकवादियों से सामना कर रहे थे। स्वयं को सबसे आगे दिखाने की अंधी दौड़ में भारतीय मीडिया इस बात को भूल गई कि उसके लाइव कवरेज से दुश्मन हमारे सैनिकों की हरकतों, उसकी पोजीशन को देख-समझ सकता है।

पत्रकारिता के बदलते परिदृष्य में संदेशों को विभिन्न तरीके से जनसमूह के समक्ष पेश करने की होड़ मची है। लगातार यह प्रयास हो रहा है कि संदेश कुछ अलग तरीके से कैसे प्रकाशित प्रसारित हो। इस होड़ ने प्रयोग को बढ़ावा दिया है, जिससे समाचारों के प्रस्तुतीकरण का तरीका थोड़ा रोचक जरूर लगता है, लेकिन यह बनावटी है। इसके पीछे होने वाले तथ्यों के तोड़ मरोड़ और सनसनीखेज बनाने की प्रवृति ने कई विकृतियों को जन्म दिया है, जो पीत पत्रकारिता के दायरे में आता है। समाचारों के प्रस्तुतीकरण से जुड़े प्रयोग पहले भी होते रहे हैं, लेकिन उनमें पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं किया गया। यह विकृति विकसित देशों की पत्रकारिता से होते हुए विकासशील देशों तक पहुंची है और आज एक गंभीर समस्या का रूप धारण कर चुकी है। इसकी प्रमुख वजह विकसित देशों को मॉडल मानकर उनके पत्रकारिता के प्रयोगों को बिना सोचे समझे अपनाना है। पीत पत्रकारिता इसकी ही देन है।

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