लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए क्या क्या प्रयास किया जाना चाहिए
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इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है।
लोकतन्त्र (संस्कृत: प्रजातन्त्रम् ) (शाब्दिक अर्थ "लोगों का शासन", संस्कृत में लोक, "जनता" तथा तंत्र, "शासन",) या प्रजातन्त्र एक ऐसी शासन व्यवस्था और लोकतान्त्रिक राज्य दोनों के लिये प्रयुक्त होता है। यद्यपि लोकतन्त्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक सन्दर्भ में किया जाता है, किन्तु लोकतन्त्र का सिद्धान्त दूसरे समूहों और संगठनों के लिये भी संगत है। मूलतः लोकतन्त्र भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों के मिश्रण बनाती हैै।
लोकतन्त्र एक ऐसी शासन प्रणाली है, जिसके अन्तर्गत जनता अपनी स्वेच्छा से निर्वाचन में आए हुए किसी भी दल को मत देकर अपना प्रतिनिधि चुन सकती है, तथा उसकी सत्ता बना सकती है। लोकतन्त्र दो शब्दों से मिलकर बना है ,लोक + तन्त्र लोक का अर्थ है जनता तथा तन्त्र का अर्थ है शासन
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Explanation:
वी- डेम इंस्टीट्यूट की '2020 की लोकतंत्र रिपोर्ट' केवल भारत के बारे में नहीं है. इस रिपोर्ट में दुनियाभर के कई देश शामिल हैं, जिनके बारे में ये रिपोर्ट दावा करती है कि वहाँ लोकतंत्र कमज़ोर पड़ता जा रहा है.
इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली स्वीडन के गोटेनबर्ग विश्वविद्यालय से जुड़ी संस्था वी- डेम इंस्टीट्यूट के अधिकारी कहते हैं कि भारत में लोकतंत्र की बिगड़ती स्थिति की उन्हें चिंता है. रिपोर्ट में 'उदार लोकतंत्र सूचकांक' में भारत को 179 देशों में 90वाँ स्थान दिया गया है और डेनमार्क को पहला.
भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका 70वें स्थान पर है जबकि नेपाल 72वें नंबर पर है. इस सूची में भारत से नीचे पाकिस्तान 126वें नंबर पर है और बांग्लादेश 154वें स्थान पर.
इस रिपोर्ट में भारत पर अलग से कोई चैप्टर नहीं है, लेकिन इसमें कहा गया है कि मीडिया, सिविल सोसाइटी और मोदी सरकार में विपक्ष के विरोध की जगह कम होती जा रही है, जिसके कारण लोकतंत्र के रूप में भारत अपना स्थान खोने की क़गार पर है.
वी- डेम इंस्टीट्यूट के अधिकारी कहते हैं कि इस रिपोर्ट को तैयार करते समय वैश्विक मानक और स्थानीय जानकारियों का ध्यान रखा गया है. इंस्टीट्यूट का दावा है कि उनकी ये रिपोर्ट बाक़ी रिपोर्टों से अलग है क्योंकि ये जटिल डेटा पर आधारित है.
रिपोर्ट पर एक नज़र डालते ही समझ में आता है कि इसमें डेटा, डेटा एनालिटिक्स, ग्राफ़िक्स, चार्ट और मैप का भरपूर इस्तेमाल किया गया है.
लोकतंत्र के इंडिकेटर्स पर भारत
संस्था के निदेशक स्टाफ़न लिंडबर्ग ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "ये मैं या पश्चिमी देशों में बैठे गोरे लोग भारत या दूसरे देशों में लोकतंत्र की दशा पर नहीं बोल रहे हैं. हमारे साथ 3,000 से अधिक विशेषज्ञों का एक नेटवर्क जुड़ा है, जिनमें से भारत में काम करने वाले पढ़े-लिखे लोग भी हैं, जो सिविल सोसाइटी और राजनीतिक पार्टियों को जानते हैं. उनकी विशेषज्ञता पक्की है."
वो आगे कहते हैं कि उनके सहयोगी किसी भी एक देश में 400 इंडिकेटर्स को लेकर लोकतंत्र की सेहत को परखने की कोशिश करते हैं. इनमें से प्रमुख इंडिकेटर्स हैं- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मीडिया की स्वतंत्रता, सिविल सोसाइटी की स्वतंत्रता, चुनावों की गुणवत्ता, मीडिया में अलग-अलग विचारों की जगह और शिक्षा में स्वतंत्रता.
लिंडबर्ग कहते हैं, "इनमें से कई लोकतंत्र के स्तंभ हैं, जो भारत में कमज़ोर पड़ते जा रहे हैं. मोदी के सत्ता में आने से दो साल पहले इनमें से कुछ इंडिकेटर्स में गिरावट आनी शुरू हो चुकी थी, लेकिन वास्तव में इसमें नाटकीय गिरावट मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से आने लगी."
लिंडबर्ग ने बताया, "मेरे विचार में पिछले पाँच से आठ सालों में स्थिति अधिक बिगड़ गई है. भारत अब लोकतंत्र न कहलाए जाने वाले देशों की श्रेणी में आने के बिल्कुल क़रीब है. हमारे इंडिकेटर्स बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में सरकार के प्रति मीडिया का पक्ष लेने का सिलसिला काफ़ी बढ़ गया है. सरकार की ओर से पत्रकारों को प्रताड़ित करना, मीडिया को सेंसर करने की कोशिश करना, पत्रकारों की गिरफ़्तारी और मीडिया की ओर से सेल्फ़ सेंसरशिप की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं."