लोकतंत्र का कोई एक दोष बताइए
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लोकतंत्र के गुण और दोष की जानकारी दें?
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ARJUN PRASAD KAIN
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मित्रों ! ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि लोकतंत्र से केवल लाभ ही होता है, लाभ के साथ इससे नुकसान भी है।
जैसे लोकतंत्र के गुण निम्नलिखित है:-
1. जनहित :- लोकतंत्र शासन को जनता के कल्याण, विकास व सुविधा का प्रतीक माना जाता है। लोकतंत्र में शासन की नीतियाँ, कार्यक्रमों, आदेशों के माध्यम से सर्वसाधारण का अधिक- से-अधिक जनहित करने का प्रयास किया जाता है।
2. राजनीतिक प्रशिक्षण :- लोकतंत्र, सर्वसाधारण को राजनीतिक प्रशिक्षण भी देता है। लोकतंत्र में संचार के साधनों, प्रेस, दूरदर्शन आदि का प्रयोग व्यापक तरीके से किया जाता है। लोकतंत्र में राजनीतिक दल, राजनेता, दबाव समूह और संगठन सक्रिय रूप से कार्य करते हैं। राजनीतिक दल जनता की इच्छाओं, आकांक्षाओं को सरकार के सामने रखते हैं। सरकार इन पर नीतियाँ बनाते हुए समस्त राजनीतिक गतिविधियों के बारे में जानकारी जनता को उपलब्ध करवाती है। इसमें समानता स्थापित करने के प्रयास किये जाते हैं।
3. नैतिकता का विकास :- लोकतंत्र में राष्ट्रीय चरित्र व नैतिकता का विकास नागरिकों में होना चाहिए। राष्ट्रप्रेम, देश – भक्ति, त्याग, बलिदान, सेवा और सहनशीलता आदि गुणों का विकास नागरिकों को राष्ट्र से जोड़े रखने का प्रयास करता है। लोकतंत्र उच्च गुणों का विकास करने का प्रयास करता है। नैतिकता लोकतंत्र को भ्रष्ट होने से रोकती है। नैतिकता से नागरिकों में आत्मविश्वास की भावना जागृत होती है। लोकतंत्र में अच्छे आदर्शों का संकल्प दोहराया जाता है।
4. क्रान्ति का आभाव :- लोकतंत्र में लोकतांत्रिक पद्धतियों को महत्व दिया जाता है। जनता के आपसी विवादों, मनमुटाव और झगडे हल करने के लिए लोकतांत्रिक पद्धति का ही सहारा लिया जाता है, इसमें हिंसा, खून-खराबा और असंवैधानिक तरीको का प्रयोग वर्जित है। लोकतंत्र में यदि शासक-वर्ग जनता पर लंबे समय तक अत्याचार करता है तो जनता लोकतांत्रिक तरीके से परिवर्तन करती है। हिंसा का सहारा परिवर्तन करने के लिए नहीं लेती है।
5. सांस्कृतिक एकता :- लोकतंत्र अनेक जातियो समुदायों, वर्गों, संगठनों के बीच सांस्कृतिक एकता स्थापित करने का प्रयास करता है। उदारवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए समन्वय जोड़-तोड़, सुलह का प्रतीक लोकतंत्र माना जाता है। लोकतंत्र सबके हितों की बात करता है। सबके कल्याण की सोचता है। सबको साथ लेकर आगे बढ़ने की बात ही सांस्कृतिक लोकतंत्र की स्थापना का आधार है। इसमें कला, साहित्य, संस्कृति को समान दृष्टि से बरकरार रखने का प्रयास किया जाता है।
6 . जन - सहयोग :- लोकतंत्र में जन सहयोग के बिना कोई कार्य सम्पन्न नहीं होता है। जनता आर्थिक विकास के लिए आर्थिक मदद देती है। राष्ट्र के रचनात्मक विकास एवं निर्माण को लिए श्रमदान करती है। लोकतंत्र, सहयोग का प्रतीत ही नहीं है बल्कि जनता में जन - सहयोग की भावना उत्पन्न करने का एकमात्र साधन है। लोकतंत्र में राष्ट्रीय समस्याओं को हल करने के लिए जन–सहयोग की आशा की जाती है। जनसाधारण में ऐसे भी लोग होते हैं जो जीवनपर्यन्त लोकतंत्र को समर्पित होते है। गरीबों की सेवा, प्राकृतिक विपदाओं आदि में जन-सहयोग किया जाता है। इसमें मनुष्य राष्ट्रीय भावना से जुड़कर जन-सहयोग करना सीखता है।
लोकतंत्र के दोष - मित्रों ! लोकतंत्र के दोषों की विस्तृत व्याख्या निम्नलिखित है :-
1. राजनीति का राजनीतिकरण :- लोकतंत्र में राजनेता, जिन आदर्शो, मूल्यों की स्थापना के लिए राजनीति में आता है। वह शासन व्यवस्था में आने के बाद राजनीतिकरण का शिकार हो जाता है। एक बार शासन व्यवस्था में आने के बाद शासन व्यवस्था से अलग नहीं होना चाहता है। वह जीवनपर्यन्त लोकतंत्र से जुड़े रहना चाहता है। जनता के आदर्शों, मूल्यों के लिए दिखावे का व्यवहार करता है। जबकि सार्वजनिक जीवन में वह कुछ करना चाहता है। वह अपने आप को राजनीतिकरण के कारण असमर्थ पाता है। ऐसी स्थिति में लोकतंत्र सबका नहीं होकर सीमावृहद, अर्थों में सिमट कर रह जाता है। लोकतंत्र में सार्वजनिक राजनीति के स्थान पर व्यक्तिकरण की राजनीति बढ़ती चली जाती है। यही इसके दोषों को उत्पन्न करती चली जाती है।
Answer: लोकतंत्र का शाब्दिक अर्थ होता है, जिसमें जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन होता है। 1)यह नागरिकों की हितों की रक्षा करता है। 2)यह प्राधिकरण के अधिकार को रोकता है। 3)इसमे जनता सर्वोपरि होती है।
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