लोकतांत्रिक तरीके से फैसले लेने की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए
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लोकतंत्र (शाब्दिक अर्थ "लोगों का शासन", संस्कृत में लोक, "जनता" तथा तंत्र, "शासन",) या प्रजातंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था और लोकतांत्रिक राज्य दोनों के लिये प्रयुक्त होता है। यद्यपि लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक सन्दर्भ में किया जाता है, किन्तु लोकतंत्र का सिद्धान्त दूसरे समूहों और संगठनों के लिये भी संगत है। मूलतः लोकतंत्र भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों के मिश्रण से बनते है।
Explanation:
किसी भी मुद्दे पर निर्णय होने से पूर्व सदस्यों के बीच में इस पर खुलकर चर्चा होती थी। सही-गलत के आकलन के लिए पक्ष-विपक्ष पर जोरदार बहस होती थी। उसके बाद ही सर्वसम्मति से निर्णय का प्रतिपादन किया जाता था। सबकी सहमति न होने पर बहुमत प्रक्रिया अपनायी जाती थी। कई जगह तो सर्वसम्मति होना अनिवार्य होता था। बहुमत से लिये गये निर्णय को ‘भूयिसिक्किम’ कहा जाता था। इसके लिए वोटिंग का सहारा लेना पड़ता था। तत्कालीन समय में वोट को 'छन्द' कहा जाता था। निर्वाचन आयुक्त की भांति इस चुनाव की देख-रेख करने वाला भी एक अधिकारी होता था जिसे 'शलाकाग्राहक; कहते थे। वोट देने के लिए तीन प्रणालियां थीं-
(1) गूढ़क (गुप्त रूप से) – अर्थात अपना मत किसी पत्र पर लिखकर जिसमें वोट देने वाले व्यक्ति का नाम नहीं आता था।
(2) विवृतक (प्रकट रूप से) – इस प्रक्रिया में व्यक्ति संबंधित विषय के प्रति अपने विचार सबके सामने प्रकट करता था। अर्थात खुले आम घोषणा।
(3) संकर्णजल्पक (शलाकाग्राहक के कान में चुपके से कहना) - सदस्य इन तीनों में से कोई भी एक प्रक्रिया अपनाने के लिए स्वतंत्र थे। शलाकाग्राहक पूरी मुस्तैदी एवं ईमानदारी से इन वोटों का हिसाब करता था।