Social Sciences, asked by akae9860, 11 months ago

लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया के महत्व को बताइए।

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Answered by ankushmishra32
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मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है. हालांकि वह लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का अंग नहीं है, लेकिन उसका महत्व इसलिए है कि वह उसके तीनों स्तंभों, विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका, के कामकाज पर नजर रखता है.

मीडिया नागरिकों को न केवल सूचित बल्कि सचेत भी करता है. लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था तीनों अंगों के एक दूसरे के साथ ताल-मेल बिठा कर काम करने और एक-दूसरे के अधिकारक्षेत्र में दखल न देने के बुनियादी सिद्धांत के आधार पर चलती है और मीडिया का काम इस पर आलोचनात्मक निगाह रखना और देश को सतर्क करते रहना है.

जाहिर है कि आलोचनात्मक मीडिया अक्सर सरकार यानी कार्यपालिका और संसद एवं विधानसभाओं को नहीं सुहाती और कभी-कभी न्यायपालिका भी उसके कामकाज पर प्रतिबंध लगाने को तत्पर हो जाती है.

अक्सर सरकारें और उनके मंत्री एवं समर्थक यह कहते सुने जाते हैं कि मीडिया सकारात्मक ख़बरें और लेख नहीं प्रसारित करता. मीडिया पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से लगाम कसना लगभग सभी सरकारों का प्रयास रहता है.

ऐसे में यदि लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग न्यायपालिका उसके और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए सामने आता है तो यह लोकतंत्र के भविष्य के लिए बेहद आश्वस्तकारी है.

2005 में गुजरात में सोहराबुद्दीन, उसकी पत्नी कौसर बी तथा तुलसी प्रजापति की संदिग्ध परिस्थितियों में हत्या हुई.

पुलिस का दावा है कि ये सभी पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे गए लेकिन सीबीआई की जांच कुछ और ही कहानी कहती थी और इन्हें फर्जी मुठभेड़ का मामला बताकर गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री और गुजरात एवं केंद्र में इस समय सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को इसमें लिप्त बताती थी. यह मुक़दमा कई नाटकीय मोड़ लेने के बावजूद अभी तक चल रहा है.

पिछले साल सीबीआई के विशेष जज एस जे शर्मा ने कुछ अभियुक्तों की इस दलील को मानते हुए कि मुकदमा वहुत संवेदनशील है और इसके कारण हिंसा भड़क सकती है, मुकदमे की सार्वजनिक सुनवाई पर रोक लगा दी थी और मीडिया द्वारा इसकी रिपोर्टिंग करने पर प्रतिबंध लगा दिया था.

इस प्रतिबंध को नौ पत्रकारों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और बुधवार को हाईकोर्ट ने एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध को हटा दिया. यही नहीं, उसने यह प्रश्न भी उठाया कि क्या सीबीआई की विशेष अदालत को ऐसा प्रतिबंध लगाने का न्यायिक अधिकार भी था?

हाईकोर्ट की जज रेवती मोहिते-डेरे ने कहा कि केवल बहुत ही असाधारण परिस्थितियों में मुकदमों की रिपोर्टिंग पर रोक लगायी जा सकती है क्योंकि क़ानून खुली अदालत में सुनवाई यानी नागरिकों को उसकी कार्यवाही के बारे में जानने का अधिकार देता है.

नागरिकों तक सूचना पहुंचाना मीडिया का काम है और उसकी भूमिका लोकतंत्र और समाज के बेहद सशक्त रखवाले की है.

जज ने मीडिया के अधिकारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों का अंतर्भूत अंग बताया और कहा कि सीबीआई के विशेष जज को मीडिया पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार ही नहीं था.

इस फैसले से एक बार फिर यह सच्चाई रेखांकित हुई है कि अक्सर निचली अदालतें क़ानून को ताक पर रखकर मनमाने फैसले सुनाती रहती हैं. इसका कारण या तो क़ानून की अपर्याप्त जानकारी है या पीड़ितों के प्रति यथोचित संवेदनशीलता का अभाव और या फिर शुद्ध भ्रष्टाचार या प्रभावशाली लोगों का दबाव. कारण जो भी हो, इससे इंसाफ को चोट अवश्य पहुंचती है.

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को इस बारे में भी जरूरी कदम उठाने चाहिए कि निचली अदालतों में योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति ही हो ताकि क़ानून के साथ खिलवाड़ बंद हो सके.

अधिकांश मामलों में तो लोग इतने समर्थ भी नहीं होते कि वे ऊंची अदालतों का दरवाजा खटखटा सकें. इसलिए जरूरत इस बात की है कि न्यायिक व्यवस्था के निचले दर्जे पर न्याय को सुनिश्चित किया जाए. आज जब भारत में मीडिया के चरित्र और भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं, बंबई हाईकोर्ट का फैसला स्वयं उसकी आंखे खोलने वाला भी है

Answered by alta65656
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