लोकतंत्र में जनमत का महत्व
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एक व्यक्ति ने एक जानवर पाल रखा था, एक दिन जानवर ने रस्सी तोड़ दी और भागने लगा, व्यक्ति उसको पकड़ने के लिए उसके पीछे-पीछे भागने लगा। पीछे भागते-भागते एक स्थान पर व्यक्ति ठोकर खाकर गिर गया, उसे चोट लग गया, चोट लगने के कारण व्यक्ति को सुस्सा आ गया। इधर जानवर भी भागते-भागते थक कर एक स्थान पर रुक गया। व्यक्ति उठकर जानवर के पास पहुँचा और जानवर के पीठ पर लाठियां बरसानी शुरु कर दी, अब जानवर को भी चोट लगने के कारण गुस्सा आ गया, और वह पुनः भागने लगा, और ऐसा भागा कि पुनः व्यक्ति के पास वापस नहीं आया। व्यक्ति भी उसे नहीं पकड़ पाया व्यक्ति वापस घर आया, जानवर के भाग जाने के कारण और चोट लगने के कारण बेचारा क्षुब्ध था, और क्रोध में भी था। घर तो उसके घर में विवाद हो रहा था, यह भी उसमें उलझ गया, क्रोध में विवाद ऐसा बढ़ा कि लाठियां चलनी शुरु हो गयीं, कुछ लाठियां इसके उपर भी गिर गयीं, खून बहने लगा किसी तरह झगड़ा शान्त हुआ और उसके घाव पर मरहम पट्टी हुआ। कुछ ही दिन बीते थे, अभी उसके शरीर के घाव भी नहीं सुखे थे कि वह पुनः उसी विवाद में उलझ गया और पुनः अपने जख्मों को ताजा कर बैठा। इस तरह की घटनाएं बार-बार देखने को मिलती हैं और कुछ नया सोचने पर विवश होना पड़ता है कि कहीं कुछ इंसान जनवरों से भी गिरे हुए इंसान तो नहीं हैं, कहीं सभ्यता और विकास के नाम पर कुछ लोग अपने जानवरपने का बाड़ा तो नहीं तैयार कर रहे हैं। एक जानवर को भी एक लाठी खाने पर समझ में आ जाता है कि लड़ाई-झगड़ा व्यर्थ की बात है इसलिए रस्सी न होने पर वह भागता है तो पुनः लड़ाई झगड़े वाले स्थान पर नहीं आता है। किन्तु क्या कारण है कि एक इंसान को नहीं समझ में आ पाता है। बार-बार लाठियां खाने पर भी वही कार्य करता है और इंसानियत को दागदार करता है।