लोकतंत्र में किस प्रकार भ्रष्टाचार होता है?
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भारतीय लोकतंत्र पर भारी भ्रष्टाचार’ शीर्षक से प्रधान संपादक का लेख पढ़ा कि हमारा लोकतंत्र भ्रष्टाचार से लड़ने में सक्षम नहीं रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का कहना कि भ्रष्ट तंत्र की वजह से सरकारी सहायता का एक रुपया बस 15 पैसे रह जाता है और वर्तमान प्रधानमंत्री का भ्रष्टाचार को विकास में बाधा करार देना जैसी बातों से साफ होता होता है कि हमारी व्यवस्था कमजोर हो चुकी है। दरअसल, भ्रष्टाचार से सबसे अधिक नुकसान राजकोष को होता है। इसमें न तो राजस्व की प्राप्ति होती है और न ही विकास या सहायता के मद से निकला धन अंतिम छोर तक पहुंच पाता है। भ्रष्टाचार काले धन को भी जेनरेट करता है, जिससे अवैध समानांतर अर्थव्यवस्था देश में चलती है। घपला, घोटाला, रिश्वत, कमीशन, अवैध कार्य जैसे भ्रष्टाचार के प्रकारों में कायदे-कानूनों का जमकर उल्लंघन होता है, जबकि ये कायदे-कानून ही हमारी व्यवस्था को मजबूत बना सकते हैं। लेकिन भ्रष्टाचार ने इन्हें धराशायी कर दिया है।
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प्रमुख पश्चिमी देश लोकतंत्र को राजनीतिक संघर्षों का समाधान मानने की मान्यता पर काम करते हैं. उनकी विदेश नीति का अंतिम लक्ष्य उन देशों में लोकतंत्र की स्थापना को बढ़ावा देना होता है, जिन्होंने लोकतंत्र के फ़ायदों का लाभ नहीं उठाया.
वे मध्यपूर्व की स्थितियां जानने के बावजूद लोकतंत्र की मान्यता से चिपके हुए हैं. हम इसके साथ सहानुभूति जता सकते हैं.
लोकतांत्रिक देश सामान्य तौर पर एक-दूसरे से युद्ध नहीं करते, अपनी सीमाओं के भीतर भी गृहयुद्ध
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