लोकतंत्र में क्षेत्रीय दलों की भूमिका का वर्णन कीजिए
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देश के प्रमुख राजनीतिक दलों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि लोकसभा चुनाव के बाद सरकार के गठन में क्षेत्रीय दलों की भूमिका महत्वपूर्ण बने रहने की संभावना है। उन्होंने कहा कि देश में फिलहाल छोटी पार्टियों का दौर समाप्त होने की कम ही उम्मीद है। निजी समाचार चैनल में छोटी पार्टियों की बड़ी महत्वाकांक्षाओं विषय पर आयोजित एक परिचर्चा में अपने विचार रखते हुए कांग्रेस की प्रवक्ता जयंती नटराजन ने कहा कि अगली सरकार के गठन में क्षेत्रीय दलों की अहम भूमिका रहने की उम्मीद है। छोटी पार्टियां क्षेत्रीय मुद्दों को मजबूती से उठाती हैं और इन पर कायम रहती हैं इसलिए स्थानीय स्तर पर इनके असर को नकारा नहीं जा सकता। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता चंदन मित्रा ने कहा कि राष्ट्रीय दल कुछ मामलों में अपनी भूमिका को निभाने में नाकामयाब रहे हैं। वरना क्षेत्रीय दल पनपते ही नहीं। राष्ट्रीय दल अपेक्षा के अनुरूप भूमिका निभाने में असफल रहे हैं। सरकार के गठन में तीसरे मोर्चे की भूमिका के बारे में उन्होंने छोटी पार्टियों के निरंतर बिखराव की दलील देते हुए कहा कि यह मोर्चा चुनाव बाद अपनी प्रासंगिकता साबित कर पाने में सफल नहीं होगा। साझा सरकारों के बारे में सकारात्मक टिप्पणी करते हुए वरिष्ठ पत्रकार विनोद मेहता ने कहा कि देश में गठबंधन सरकारों का दौर अभी बीता नहीं है।ड्ढr वक्ताओं ने तीसरे मोर्चे की सफलता पर संदेह व्यक्त करते हुए माना कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में क्षेत्रिय दल राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को सही ढंग से समझ पाने में अब तक नाकाम रहे हैं। मेहता ने श्रीलंका में तमिल विद्रोहियों और सरकार के बीच संघर्ष में तमिलनाडु के दलों के रवैए का उदाहरण रखा।ड्ढr मेहता ने मौजूदा दौर में क्षेत्रीय दलों द्वारा व्यापक हित को नजरंदाज करते हुए क्षेत्रीय हितों को आगे रखकर साझा सरकारों की राह में रोड़े अटकाने को भी एक बड़ी दिक्कत बताया। उनके इस तर्क पर सभी वक्ताओं ने आम सहमति जाहिर करते हुए राष्ट्रीय दलों से क्षेत्रीय आकांक्षाओं का ध्यान रखने और छोटी पार्टियों से व्यापक नजरिया अपनाने की जरूरत पर बल दिया। परिचर्चा में बीजू जनता दल के जयंत पांडा, पत्रकार नलिनी सिंह भी शामिल थी।