लोकतंत्र में निष्पक्ष की भूमि मॉडलर करो
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चुनाव आयोग से उम्मीद की जाती है कि देश में जहां भी चुनाव हों वहां स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण मतदान कराया जाए। चुनाव से पहले मतदाता सूचियों की अच्छी तरह से जांच-परख हो। फर्जी मतदाताओं के नाम सूची से अलग किए जाएं। जो अंतिम मतदाता सूची बने, वह त्रुटिरहित हो। ईवीएम-वीवीपीएटी मशीनों की अच्छी तरह से जांच की जाए, फिर उनका इस्तेमाल हो।चुनाव आयोग ने अब मतदाता सूचियों की जांच कराने का फैसला किया है। मतदाता सूचियों की जांच फिलहाल मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में होगी, जहां इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस जांच में मतदाता सूचियों के अलावा मतदाता केंद्रों और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को रखे जाने की व्यवस्था आदि की भी विस्तृत जांच होगी। व्यवस्थित मतदाता शिक्षा और चुनावी भागीदारी (एसवीईईपी) एवं बूथ स्तर के अधिकारियों (बीएलओ) के प्रशिक्षण का भी निरीक्षण किया जाएगा। जांच दल चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों या कानूनी प्रावधानों का पालन नहीं करने के मामलों का पता लगाएंगे और उनमें सुधार सुनिश्चित करेंगे। आयोग ने इस बाबत संबंधित राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों से अपने मातहत अधिकारियों को यह निर्देश देने को कहा है कि वे जांच दलों की मांगी सूचना उसी दिन तत्काल मुहैया कराएं। इस पूरी कवायद के पीछे चुनाव आयोग का मकसद, अपने निर्देशों और वैधानिक प्रावधानों के निपटारे की जहां निगरानी करना है, वहीं जरूरत के मुताबिक सुधार के लिए कदम भी उठाना है।
जाहिर है, ऐसी याचिकाओं में जो भी मुद्दे उठाए गए हैं, वे बेहद गंभीर हैं। इन्हें नजरअंदाज करना लोकतंत्र को कमजोर करने जैसा होगा। यही वजह है कि इस संवेदनशील याचिका को न सिर्फ अदालत ने स्वीकार किया, बल्कि केंद्रीय निर्वाचन आयोग और प्रदेश निर्वाचन आयोग दोनों को नोटिस देकर इस संबंध में जवाब तलब भी किया। चुनाव आयोग ने इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में अपना जवाब भी दाखिल कर दिया है। आयोग ने अदालत में दिए गए हलफनामे में कहा है कि याचिका में आयोग पर लगाए गए आरोप गलत, बेबुनियाद और भ्रामक हैं। आयोग अपनी भूमिका और कर्तव्यों को लेकर सतर्क है। साथ ही ईवीएम की खरीद और सुरक्षा सुनिश्चित करने, वीवीपीएटी की छपाई, मशीनों की जांच, अधिकारियों की तैनाती आदि सुनिश्चित करने के लिए उसने सभी आवश्यक निर्देश जारी किए हैं। याचिकाकर्ता का वीवीपैट मशीनों में खराबी का आरोप पूरी तरह से झूठा और भ्रामक है।
विधानसभा क्षेत्र में एक मतदाता का नाम दो जगह होना गैरकानूनी है। फर्जी मतदाता पहचान पत्र बनवाने का मकसद, कहीं न कहीं चुनाव को प्रभावित करना है। इस तरह की मतदाता सूचियां यदि दुरुस्त नहीं हुर्इं, तो निष्पक्ष चुनाव कैसे संपन्न होगा? जाहिर है, ऐसे में लोकतंत्र एक मजाक बन कर रह जाएगा। जब इस तरह की शिकायतें आती हैं, तो निश्चित तौर पर इन शिकायतों का निदान करना चुनाव आयोग की प्राथमिक जिम्मेदारी है। चुनाव आयोग से उम्मीद की जाती है कि देश में जहां भी चुनाव हों वहां स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण मतदान कराया जाए। चुनाव से पहले मतदाता सूचियों की अच्छी तरह से जांच-परख हो। फर्जी मतदाताओं के नाम सूची से अलग किए जाएं। जो अंतिम मतदाता सूची बने, वह त्रुटिरहित हो। ईवीएम-वीवीपीएटी मशीनों की अच्छी तरह से जांच की जाए, फिर उनका इस्तेमाल हो। यह सुनिश्चित किया जाए कि चुनाव से पहले या उसके बाद में किसी भी उपाय से ईवीएम-वीवीपीएटी मशीनों के साथ छेड़छाड़ मुमकिन न हो। चुनाव आचार संहिता का पालन भेदभाव रहित किया जाए। मीडिया में पेड न्यूज का मामला सामने आने के बाद, संबंधित शख्स पर तुरंत कार्रवाई हो। यदि किसी क्षेत्र में कोई शिकायत सामने आए, तो उसकी तत्परता से जांच हो। जांच निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से कराई जाए, ताकि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर कोई सवाल न खड़ा करे। अकेले चुनाव आयोग ही नहीं, बल्कि सरकार की भी जिम्मेदारी बनती है कि देश में निष्पक्ष एवं पारदर्शी तरीके से लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए। निर्वाचन प्रणाली पर जनता का यकीन कायम रहना, लोकतंत्र की सेहत के लिए बेहद जरूरी है। यदि चुनाव प्रणाली से उसका यकीन उठ जाएगा, तो वह क्यों चुनाव में हिस्सा लेगी?
घर के बुजुर्गों की सुरक्षा की जिम्मेदारी महज सरकारी दायित्व मान कर युवाओं का अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ना अनुचित है। पेंशन से अधिक जरूरी घर के सदस्यों से मिलने वाला प्यार और सम्मान है। बुजुर्ग प्यार और सम्मान के भूखे होते हैं, पैसों के नहीं। बुजुर्ग अवस्था, मानव जीवन की संवेदनशील अवस्था होती है। एक निश्चित आयु के बाद बुजुर्गों को कई तरह की शारीरिक-मानसिक समस्याओं से गुजरना पड़ता है। एक अजीब-सा मनोवैज्ञानिक डर और असुरक्षा की भावना मन में घर करने लगती है। चिंता में डूबे रहने के कारण वृद्धों में तनाव और अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। लेकिन ज्यादातर लोग इसे समझते नहीं हैं और बुजुर्गों के साथ अनुचित व्यवहार करते हैं। जब तक मन में यह भाव नहीं होगा कि आखिर हमें भी एक दिन ऐसे ही दौर से गुजरना है, लिहाजा इस दर्द को हमें समझना होगा, तब तक हम बुजुर्गों की सेवा नहीं कर पाएंगे।