Hindi, asked by skd43500, 1 month ago

लोकतंत्र और हमारा दायित्व पर रचनात्मक लेखन डेढ़ सौ शब्दों में​

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Answered by helenfaustina12
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बोधगया दोमुहान स्थित जीवन संघम के प्रांगण में शनिवार को शांति सदभावना समिति द्वारा लोकतंत्र, राजनीति और हमारा दायित्व विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता हरेन्द्र सिंह भोक्ता ने की। अतिथियों का स्वागत जीवन संघम के निदेशक फादर जोस के ने किया। संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि आजादी आन्दोलन के बाद हमने स्वतंत्रता प्राप्त की तथा सत्ता संचालन हेतू लोकतंत्रीय संसदीय प्रणाली को चुना। लोकतंत्र समाज के दबे कूचले, वंचित, महिला, दलित, गरीब गुरबा को एकसमान भागीदारी एवं समान हिस्सेदारी का अधिकार देता है। लोकतंत्र के नष्ट होने का अर्थ है समाज के कमजोर वर्ग को पुरातन यथास्थितिवाद में ढकेलना। वक्ताओं ने कहा कि लोकतंत्र केवल एक वोट की बराबरी से नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक बराबरी से आयेगा। यह लोकतंत्र ही है जो सभी व्यक्ति और समुदाय को अपनी आस्था विश्वास, रहन-सहन, संस्कृति को अपनाने की आजादी देती है। सभी धर्म सम्प्रदाय के साथ सता द्वारा समान भाव रखना लोकतंत्र की शर्त है। असहमति के साथ सहमति भी लोकतंत्र की बुनियाद है। आदिवासियों, दलितों, महिलाओं की आवाज उठाने वाले कवि, अधिवक्ता, बुद्विजीवियों को देशद्रोह के फर्जी मुकदमें में फसाकर मुंह बन्द करने की नाकाम कोशिश की जा रही है। गोष्ठी के दौरान जगत भूषण ने अनुमण्डल स्तर पर शांति सद्भावना एवं लोकतंत्र की प्रक्रिया को मजबूत करने का प्रस्ताव रखा। राजन शाह जे. भी. आई., जगदेव सिंह, जिलाध्यक्ष, जे.पी.सेनानी, लालदेव राही, संघर्ष वाहिनी, रामदेव प्रसाद, राजकुमार यादव, रीता कुमारी, प्रमिला पाठक, रामविलास, परमेष्वर भाई, जनार्दन, आनन्द कुमार, नीरज, आदि ने भी अपने विचार रखे

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