लोकतंत्र राजतंत्र और सैनिक शासन से किस प्रकार भिन्न है
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लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जनता द्वारा चुनी गई सरकार जनता के हित के लिए फैसले लेती है या यूँ कह सकते है की जनता के लिए जनता द्वारा जनता का शासन। क्या सरकार सम्पूर्ण जनता के अनुरूप फैसले ले सकती है ? , दिक्कत शुरू यही से होती है जब जनता द्वारा सत्ता सौपने के बाद सरकारे जनता की तकलीफो की अनदेखी करना शुरू कर देती है। जबकि वास्तविक लोकतंत्र जनता में बसता है। यहाँ यह आवश्यक है की सरकार जनता के अनुरूप चले, इससे ज्यादा सरकार अगर पूर्ण लोकतंत्र का स्वरुप लेती है तो वंहा वास्तविक लोकतंत्र की हत्या सुनिश्चित है और वो लोकतंत्र न होकर राजतन्त्र मात्र रह जायेगा।
इसीलिए एक स्वस्थ्य लोकतंत्र ही स्वस्थ समाज के लिए आवश्यक है -
लोकतंत्र में लोग जनमत के तहत अपने प्रतिनिधि चुनते हैं दोनों के मध्य 5 साल का एक समझौता होता है जिनमे सरकार अपने हर काम के लिए लोगों के प्रति उत्तरदायी होती है । 5 साल के बाद लोग अगर चाहें तो सरकार के कार्यों का मूल्यांकन कर समझौता तोड़ किसी ओर को सत्ता सौंप सकते हैं।
राजतन्त्र शासन की सबसे प्राचीन व्यवस्था है जिनमे राजाओं को ईश्वर का प्रतिनिधि समझा जाता है। सारी वैधानिक कार्यपालिक ओर न्यायिक शक्तियां उसी राजा में निहित मानी गयी हैं। कोई चुनाव नहीं बस वहीं राजपरिवार क्रमबद्ध रूप से शासन सत्ता को थामे रहता है।
निश्चित ही राजतन्त्र का समय अब समाप्त हो चला और हर तरफ लोकतंत्र की बयार बह रही है जो एक उदारवादी व्यवस्था है ।
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