लिखिए:
भाषा का प्रमुख गुण है-सृजनशीलता। हिन्दी में सृजनशीलता का अद्भुत गुण
है, अद्भुत क्षमता है, जिससे यह निरंतर प्रवाहमान है। हिन्दी ही ऐसी भाषा है, जिसमें
समायोजन की पर्याप्त और जादुई शक्ति है। अन्य भाषाओं और संस्कृतियों के शब्दों
को हिन्दी जिस अधिकार और सहजता से जज्ब करती है, उससे हिन्दी की संभावनाएँ
प्रशस्त होती हैं। हिन्दी के लचीलेपन ने अनेक भाषाओं के शब्दों को ही नहीं उसके
सांस्कृतिक तेवरों को भी अपने में समेट लिया है। यही कारण है कि हिन्दी सामाजिक
संस्कृति की तथा विभिन्न भाषा-भाषियों और धर्मावलंबियों की प्रमुख पहचान बन गई
है। अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेजी आदि के शब्द हिन्दी की शब्द सम्पदा में ऐसे मिल गए
हैं, जैसे वे जन्म से ही इस भाषा परिवार के सदस्य हों, यह समाहार उसकी जीवंवता का
प्रमाण है।
आज हम परहेजी होकर शुद्धतावाद की जड़ मानसिकता में कैद होकर नहीं रह
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