लेखिका की माँ परंपरा का निर्वाह न करते हुए भी सबके दिलों पर राज करती थी। इस कथन
के आलोक में-
(क) लेखिका की माँ के व्यक्तित्व की विशेषताएँ लिखिए।
(ख)लेखिका की दादी के घर के माहौल का शब्द-चित्र अंकित कीजिए।
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Answer:
लेखिका की माँ की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर: लेखिका की माँ की दो विशेषताएँ थीं। एक तो वे हमेशा सच बोलती थीं। इसलिए घर के सभी लोग उनका सम्मान करते थे। दूसरी कि वो कभी भी इधर की बात उधर नहीं करती थीं। इसलिए घर के बाहर के लोग भी उनपर पूरा भरोसा करते थे।
लेखिका की दादी के घर के माहौल का शब्द चित्र अंकित कीजिए।
उत्तर: लेखिका की दादी के घर में कई लोग रहते थे; जैसा कि किसी भी संयुक्त परिवार में होता है। लेकिन हर व्यक्ति को अपने ढ़ंग से जीने की पूरी छूट थी। कोई भी अपनी इच्छा दूसरे पर नहीं थोपता था।
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Answer:
) लेखिका की माँ की स्थितियाँ और व्यक्तित्व-दोनों असाधारण थे। उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे स्वतंत्रता आंदोलन के लिए काम करती थीं। उनकी सोच मौलिक थी। लेखिका के शब्दों में वह खुद अपने तरीके से आज़ादी के जुनून को निभाती थीं। इस विशेषता के कारण घर-भर के लोग उसका आदर करते थे। कोई उनसे घर गृहस्थी के काम नहीं करवाता था। उनका व्यक्तित्व ऐसा प्रभावी था कि ठोस कामों के बारे में उनसे केवल राय ली जाती थी और उस राय को पत्थर की लकीर मानकर निभाया जाता था।
लेखिका की माँ का सारा समय किताबें पढ़ने, साहित्य चर्चा करने और संगीत सुनने में बीतता था। वे कभी बच्चों के साथ लाड़-प्यार भी नहीं करती थीं। उनके मान-सम्मान के दो कारण प्रमुख थे। वे कभी झूठ नहीं बोलती थीं। वे एक की गोपनीय बात दूसरे से नहीं कहती थीं।
(ख) लेखिका की दादी के घर में विचित्र विरोधों का संगम था। परदादी लीक से परे हटकर थीं। वे चाहती थीं कि उनकी पतोहू को होने वाली पहली संतान कन्या हो। उसने यह मन्नत मानकर जगजाहिर भी कर दी। इससे घर के अन्य सभी लोग हैरान थे। परंतु लेखिका की दादी ने इस इच्छा को स्वीकार करके होने वाली पोती को खिलाने-दुलारने की कल्पनाएँ भी कर डालीं। लेखिका की माँ तो बिलकुल ही विचित्र थीं। वे घर का कोई काम नहीं करती थीं। वे आज़ादी के आंदोलन में सक्रिय रहती थीं। उन्हें पुस्तकें पढ़ने, संगीत सुनने और साहित्य चर्चा करने से ही फुर्सत नहीं थी। उनके पति भी क्रांतिकारी थे। वे आर्थिक दृष्टि से अधिक समृद्ध नहीं थे। विचित्र बात यह थी कि लेखिका के दादा अंग्रेजों के बड़े प्रशंसक थे। घर में चलती उन्हीं की थी। किंतु घर की नारियाँ अपने-अपने तरीके से जीने के लिए स्वतंत्र थीं। कोई किसी के विकास में बाधा नहीं बनता था।