लेखिका के निकट आने पर गोरा किस प्रकार अपना स्नेहा प्रकट करती थी
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पास आने पर वह अपनी गर्दन सहलाने के लिए आगे बढ़ा देती थी। हाथ फेरने पर वह आश्वस्त होकर उसे कन्धे पर रख लेती और आँखें मूंद लेती थी। अपने से दूर जाने पर वह जाने वाले को गर्दन घुमा- घुमा कर देखती रहती थी। कोई जरूरत होने पर वह एक निश्चित ध्वनि करती थी
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