लेखिका ने डालमियानगर में नारी चेतना जगाने का प्रयास किस प्रकार किया
Answers
Explanation:
मृदुला गर्ग जी ने अपनी कहानियों में युग-यथार्थ की पृष्ठभूमि में युग जीवन को तथा युग जीवन के संदर्भ में व्यक्ति के जीवन को विभिन्न प्रसंगों तथा स्थितियों में अंकित किया है। नारी के टूटते जीवन, सेक्स सम्बन्धी टूटते रिश्ते, पारिवारिक समस्याएँ और उनकी कहानियों में व्यक्ति के बाहरी और सामाजिक प्राणी के रूप में उसकी भूमिका भी दर्शाई गई है। पुराने एवं रूढ़िगत परम्पराएँ, विचारों और विश्वासों की टूटन, नव-चेतना के उभार के लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं। मृदुला जी की कहानियों के अध्ययन से पहले इस विषय में उनकी अवधारणा जान लेना अधिक प्रासंगिक होगा। मृदुला गर्ग ने समाज में जिये या भोगी हुई यथार्थ को अपने साहित्य में हू-ब-हू चित्रित करने का प्रयास किया है। उसके बाद धीरे-धीरे उनकी सोच का दायरा बढ़ता चला गया। अपने युगीन व्यक्ति और समाज की सहज झलक इनकी कहानियों में देखी जा सकती है। उन्होंने अपनी कहानियों में युग-जीवन को तथा युग जीवन के संदर्भ में व्यक्ति के जीवन को विभिन्न कोणों, प्रसंगों तथा स्थितियों में देखा है और भिन्न-भिन्न आयामों का चित्रण प्रस्तुत किया है।
मृदुला गर्ग की कहानियों में नारी चेतना का अध्ययन में लेखिका के कहानियों को नई चेतना की दृष्टि से तीन मोड़ों में विभाजित किया है। समग्र आंकलन की दृष्टि से मैंने यह अन्वेषित किया है कि मृदुला गर्ग हिन्दी की जानी-मानी सिद्ध कथाकार हैं।
मृदुला गर्ग साठोत्तर हिन्दी कथा साहित्य की मूर्धन्य लेखिका हैं। उन्होंने अपने कथा लेखन में नारी चेतना के विविध रूपों को प्रस्तुत किया है। ग्रामीण नारी जीवन के साथ नगरीय नारी जीवन की घटनाओं का उल्लेख करती हुयी मृदुला जी ने जीवन्त एवं यथार्थवादी कथा प्रसंगों को अपनी कहानी कला का आधार ग्रहण किया है। जहाँ तक मैं समझती हूँ उनका मानना है कि समकालीन कथा साहित्य पर कोई चर्चा तब तक पूर्ण और सार्थक नहीं हो सकती, जब तक उसमें नारी-चेतना से प्रेरित कथा प्रसंगों को समसामयिक परिवेश में यथोचित स्थान न दिया जाय। इस प्रकार मैंने अनुभव किया कि लेखिका की दृष्टि में नये भावबोध से उत्प्रेरित कथा साहित्य के सृजन में सर्वाधिक सशक्त उत्तरदायित्व नारी चेतना का रहा है।
Answer:
लेखिका शादी के बाद बिहार के पिछड़े कस्बे डालमीया नगर में रहने गईं। यहाँ का समाज इतना पुरातन पंथी था कि मर्द औरते चाहे पति-पत्नी क्यों न हों, एक साथ बैठ कर सिनेमा नहीं देख सकते थे। अभिनय की शौकीन लेखिका ने साल भर के प्रयास से वहाँ के स्त्री-पुरूषों को एक साथ नाटक में काम करने के लिए तैयार कर लिया। वे महिलाएँ जो अपने पति के साथ फिल्म तक नहीं देखने जाती थीं, अब पराए मर्द के साथ नाटक में काम करने के लिए राजी हो गईं। लेखिका के साथ मिलकर अनेक नाटकों का मंचन किया और बाढ़ पीड़ितों के लिए धन एकत्र किया। इस प्रकार लेखिका ने डालमिया नगर में नार्री चेतना जगाने का भरपूर प्रयास किया।
HOPE THIS WILL HELP YOU