लिखित :-
बाबा भारती ने सहपासिंह से मुलतान की प्रशंसा किन
शब्दो मे की?
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Answers
Answer:
बहुत समय पहले की बात है। एक गांव के छोटे-से मंदिर में बाबा भारती नाम के एक संत रहते थे। उनके पास एक घोड़ा था, जिसे बचपन से उन्होंने ही पाला था।
उस इलाके में खड़ग सिंह का नाम का एक बहुत बड़ा डाकू था। एक दिन दोपहर के समय डाकू खड़ग सिंह बाबा भारती के पास पहुंचा और नमस्कार करके बैठ गया। बाबा भारती ने पूछा, कहो खड़ग सिंह क्या हाल हैं, कैसे आना हुआ। खड़ग सिंह ने कहा कि बाबा सुल्तान को एक बार देखने की चाह आपकी कुटिया पर खींच लाई।
सुल्तान की प्रशंसा सुनकर बाबा का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। वह उसे खोलकर बाहर ले आए। उसकी चाल देखकर खड़ग सिंह के हृदय पर सांप लोटने लगा। जाते-जाते उसने कहा, बाबाजी, मैं यह घोड़ा अब आपके पास न रहने दूंगा। बाबा डर गए। उनकी सारी रात अस्तबल की रखवाली में कटने लगी। कई माह बीत गए, लेकिन वह न आया।
बाबा कुछ असावधान हो गए और इस भय को स्वप्न के भय की तरह मिथ्या समझने लगे। संध्या का समय था। बाबा सुल्तान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। सहसा एक ओर से आवाज आई। बाबा, इस गरीब की सुनते जाना।
बाबा ने घोड़े को रोक लिया। देखा, एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा है। बोले, क्यों तुम्हें क्या कष्ट है?
अपाहिज ने हाथ जोड़कर कहा- बाबा, मुझ पर दया करो। अगला गांव यहां से तीन मील है, मुझे वहां जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो, परमात्मा भला करेगा। "वहाँ तुम्हारा कौन है?" "दुर्गादत्त वैद्य का नाम आपने सुना होगा। मैं उनका सौतेला भाई हूँ।"
बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर चलने लगे। सहसा उन्हें एक झटका-सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तनकर बैठा है और घोड़े को दौड़ाए जा रहा है। उनके मुख से भय, विस्मय और निराशा से मिली हुई चीख निकल गई। वह अपाहिज डाकू खड़ग सिंह था। बाबा कुछ समय तक चुप रहे और कुछ समय बाद कुछ निश्चय कर पूरे बल से चिल्लाकर बोले,जरा ठहर जाओ।
Explanation:
गांव के बाहर के मंदिर में बाबा भारती नाम के एक साधु रहते थे | उनके पास एक बढ़िया घोड़ा था जिससे वे सुल्तान कहते थे वैसा घोड़ा आसपास के किसी गांव में ना था बाबा भारतीय अपने हाथ से सुल्तान को दाना खिलाते थे जब तक शाम को बाबा सुल्तान पर 810 मिल का चक्कर ना लगा लेते उन्हें चैन आता इस इलाके मैं खड़क सिंह नाम का एक डाकू था लोग उसके नाम से कांपते थे खड़क सिंह ने भी सुल्तान के बारे में सुना एक दिन वह बाबा भारती के पास पहुंचा बाबा ने पूछा कहो खड़क सिंह क्या हाल है खड़क सिंह ने उत्तर दिया मैं बिल्कुल ठीक हूं बाबा ने पूछा कहो मेरे पास कैसे आए थे खड़क सिंह ने कहा आप के घोड़े सुल्तान की बहुत प्रशंसा सुनी थी इसलिए देखने चला आया उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी कहते हैं देखने में भी बड़ा सुंदर है बाबा भारती उसे अस्तबल में ले गए बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से खड़क सिंह ने घोड़ा देखा आश्चर्य से ऐसा बांध का घोड़ा उसने कभी ना देखा था बालक को किसी अधीरता से बोला बाबा जी इसकी चाल ना देखी तो क्या बाबा जी भी मनुष्य ही थे अपनी वस्तु की प्रशंसा दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका ह्रदय अधीर हो उठा घोड़े को खोलकर बाहर ले गए घोड़ा वायु वेग से उड़ने लगा उसकी चाल देखकर खड़क सिंह के विरुद्ध पर सांप लोट गया जाते-जाते उसने कहा बाबा जी मैं यह घोड़ा आपके पास रहने ना दूंगा बाबा भारती डर गए अब उन्हें रात को नींद ना आती सारी रात अस्तबल की रखवाली में कटने लगी कई माह बीत गए और वह ना आया यहां तक कि बाबा भारती कुछ सावधान हो गए संध्या का समय था बाबू है बाबा सुल्तान पर सवार होकर घूमने जा रहे थे घोड़े को देखते हुए फूले न समाते थे सहरसा एक और से आवाज आई थी ओ बाबा इस कमरे की भी सुनते जाना आवाज में करुणा थी बाबा ने घोड़े को रोक लिया देखा एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पढ़ा कर आ रहा है हाथ जोड़कर उसने कहा बाबा मुझ पर दया करो राम वाला यहां से 3 मील दूर है मुझे वहां जाना है घोड़े पर चढ़ा लो परमात्मा भला करेगा बाबा भारती ने घोड़े पर अपाहिज को सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगे सहरसा उन्हें एक झटका सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर बनकर बैठा है और घोड़े को दौड़ाया लिए जा रहा है बाबा भारती थोड़ी देर देखते रहे फिर चिल्लाकर बोले जरा ठहर जाओ खड़क सिंह खड़क सिंह में घोड़ा रोक दिया और बाबा से कहा बाबा जी मैं यह घोड़ा अब ना दूंगा बाबा ने कहा भाई मुझे घोड़ा ना चाहिए यह तुम्हारा है बस तुम मेरी एक बात सुनते जाओ मेरी प्रार्थना है कि इस घटना का किसी के सामने जिक्र ना करना खड़क सिंह का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया उसने पूछा बाबा जी इसमें आपको क्या डर है सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया लोगों को यदि इस घटना का पता लग गया तो वह किसी गरीब पर विश्वास ना करेंगे यह कहते-कहते उन्होंने सुल्तान की ओर से मुंह मोड़ लिया बाबा भारती चले गए परंतु उनके शब्द खड़क सिंह के कानों में गूंज रहे थे रात के अंधेरे में खड़क सिंह अस्तबल में पहुंचा फटा खुला था उसने चुपचाप घोड़े को अस्तबल में बांधा और चला गया सुबह स्नान करने के बाद बाबा भारती के पांव रोज की तरह असफल की ओर बढ़ गए फाटक पर पहुंचकर उन्हें अपनी भूल का पता चला वह वहीं रुक गए सुल्तान ने बाबा के पैरों की आवाज पहचान है और वह हिंदी में आया वह खुशी से दौड़ते हुए अंदर घुसे और घोड़े के गले से लिपट गए फिर हुए संतोष से बोले अब कोई गरीब की सहायता से मुंह ना मोरे गा