लेखक चलते-पुरज़े लोगों का यथार्थ दोष क्यों मानता है? धर्म की आड़ पाठ के आधार पर बताइए । (5 marks)
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लेखक चलते पुरजे लोगों का यथार्थ दोष इसलिए मानने लगता है कि क्योंकि कुछ अत्यंत चालाक और चलते पुरजे होते है, जो समाज के कम पढ़े-लिखे, ग्रामीण और आम जनता के मन में धर्म संबंधी कट्टर बातें भर देते हैं और उन्हें धर्मांध बना देते हैं। यह लोग जब धर्मांध बन जाते हैं तो धर्म के विरुद्ध कोई भी बात सुनते ही भड़क उठते हैं और हिंसा करने पर उतारू हो जाते हैं, जबकि यह लोग धर्म के विषय में बहुत गहराई से नहीं जानते, लेकिन चलते-पुरजे लोगों द्वारा इनके अंदर ऐसी धर्मांधता भर दी जाती है।
ऐसी कट्टर धर्मांधता के आधार पर ये लोग धर्म के प्रति कट्टर हो जाते हैं और धार्मिक पाखंड को भी धर्म मानकर धार्मिक होने का ढोंग रचते हैं। चालाक चतुर चलते लोग ऐसे लोगों का दुरुपयोग करके अपने स्वार्थ की पूर्ति करते हैं। इसीलिए लेखक ने इस तरह की प्रवृत्ति को चलते पुर्जे लोगों का यथार्थ दोष माना है।
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