लेखक फ़ादरबुल्के मन से संन्यासी क्यों नहीं मानता है ?
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फादर बुल्के भारतीय संन्यासी प्रवृत्ति के आधार पर खरे संन्यासी नहीं थे। लेखक के अनुसार वे केवल संकल्प के संन्यासी थे, मन से नहीं। उन्होंने परंपरागत संन्यासी प्रवृत्ति से अलग नयी परंपरा को स्थापित किया। वे संभवतः आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से कॉलेज में अध्ययन एवं अध्यापन भी करते थे।
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