लेखक गुरदयाल सिंह के बचपन और आज के बच्चों के बचपन में क्या अंतर है क्लास टेंथ हिंदी
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लेखक गुरदयाल सिंह के बचपन और आज के बच्चों के बचपन में क्या अंतर है क्लास टेंथ हिंदी
लेखक गुरदयाल सिंह के बचपन के दिन गाँव में बीते थे | उनके साथ खेलने के लिए भी ज्यादा लोग नहीं होते थे | वह अपने परिवार के साथ खेलते थे | लेखक को स्कूल जाने का बिलकुल भी मन नहीं लगता था | बचपन में कहीं भी खेल लिया करते थे | रेत , मिट्टी , पानी सब जगह खेलते थे | चोट लगने पर घर जाते थे उन्हें डांट पड़ती थी | लेखक की स्कूल में बाहर जो हरी घास होती थी, वह बहुत अच्छी लगती थी | लेखक को अपने बचपन की याद आती है |
आज के बच्चों के बचपन में बहुत फर्क है | आज के समय में बचपन में तो टीवी, मोबाईल सब आर्टिफिशियल जैसे हो गया है | हमारा बचपन चारदीवारी में रह गया है | बच्चे दादा-दादी के साथ नहीं रहते है | बच्चे बाहर कोई भी खेल नहीं खेलते है | वह घे के अंदर ही रहना पसंद करते है | आज के समय में बच्चे अच्छे-अच्छे स्कूलों में पढ़ाई करते है |
गुरदयाल सिंह के बचपन और आज के बच्चों के बचपन में बहुत अंतर था| पहले ज्यादा साधन नहीं होते थे और आज के समय में बच्चों को सारी चीज़े आसानी से मिल जाती है |