लेखक गुरदयाल सिंह के बचपन तथा आज के बच्चों के बीच क्या अंतर है
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लेखक गुरदयाल सिंह के बचपन तथा आज के बच्चों के बीच क्या अंतर है।
➲ लेखक गुरुदयाल सिंह के बचपन के दिनों आज के बच्चों के बचपन के बीच भारी अंतर है। लेखक के बचपन के दिनों के बच्चे स्वच्छंद होकर हंसते-खेलते थे। उस समय आज की तरह तकनीक इतनी उन्नत नहीं थी, इस कारण बच्चे बाहर खेलते कूदते, मस्ती धमाचौकड़ी करते थे। उन पर पढ़ाई का भी इतना बोझ नहीं था, आज के बच्चे अपने आप में सिमट कर रह गए हैं। मोबाइल, टीवी, वीडियो गेम, लैपटॉप जैसी तकनीकी यंत्रों के कारण बच्चे केवल उन्हीं में व्यस्त रहते हैं, बाहर के मैदानी खेलों से दूर हो गए हैं।
गाँव मोहल्लों में घूम-घूम का धमाचौकड़ी मचाना वाले काम बच्चे अब नहीं करते। अब वे केवल अपने मोबाइल पर गेम खेलने मोबाइल पर चैटिंग करने आदि में व्यस्त रहते हैं, आजकल के बच्चे अंतर्मुखी हो गए हैं, जबकि लेखक के बचपन के दिनों के बच्चे बहिर्मुखी थे, उन पर किसी तरह का तनाव नहीं होता था। आजकल के बच्चे पर पढ़ाई का तनाव और दबाव अधिक होता है।
हालांकि लेखक के बचपन के दिनों में बच्चों को अधिक सुख सुविधाएं नहीं थी, फिर भी उनका बचपन हंसी खुशी बीत जाता और यादगारे छोड़ जाता था। जबकि आजकल के बच्चों को तमाम सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन फिर भी बच्चे संतुष्ट नहीं हैं।
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