लेखक हरिशंकर परसाई जी प्रेमचन्द जी को क्या सलाह दे रहे हैं?
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निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
तुम मुझ पर या हम सभी पर हँस रहे हो, उन पर जो अँगुली छिपाए और तलुआ घिसाए चल रहे हैं, उन पर जो टीले को बरकाकर बाजू से निकल रहे हैं। तुम कह रहे हो-मैंने तो ठोकर मार-मारकर जूता फाड़ लिया, अँगुली बाहर निकल आई, पर पाँव बच रहा और मैं चलता रहा, मगर तुम अँगुली को ढाँकने की चिंता में तलुवे का नाश कर रहे हो। तुम चलोगे कैसे?
लेखक के अनुसार प्रेमचंद किन पर हँस रहे हैं?
प्रेमचंद के मुसकराने में लेखक को क्या व्यंग्य नज़र आता है?
प्रेमचंद को किनके चलने की चिंता सता रही है?
लेखक ने प्रेमचंद को साहित्यिक पुरखा कहा है, स्पष्ट कीजिए।
प्रेमचन्द के फटे जूते पाठ के सन्दर्भ में आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए- तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।
पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए- जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए-जिसे तुम घृणित समझाते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अँगली से इशारा करते हो?
प्रेमचंद के फटे जूते (हरिशंकर परसाई)
लेखक के अनुसार प्रेमचंद लेखक और उन जैसे सभी लोगों पर हँस रहे हैं जो अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं और संकोचवश उसे दूसरों के सामने प्रकट नहीं करते। इसके अलावा जीवन में आनेवाली समस्याओं से संघर्ष न करके उनसे मुँह फेर लेने वालों पर भी प्रेमचंद मुसकरा रहे हैं।
प्रेमचंद के मुसकराने में लेखक को यह व्यंग्य नज़र आता है कि मानो प्रेमचंद उनसे कह रहे हों कि मैंने भले ही चट्टानों से टकराकर अपना जूता फाड़ लिया हो पर मेरे पैर तो सुरक्षित हैं और चट्टानों से बचकर निकलने वाले तुम लोगों के जूते भले ही ठीक हों पर तलवे घिसने के कारण तुम्हारा पंजा सुरक्षित नहीं है और लहूलुहान हो रहा है।
प्रेमचंद को उन व्यक्तियों के चलने की चिंता सता रही है जो समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों से बचकर निकल जाते हैं और संघर्ष नहीं करना चाहते।
लेखक ने प्रेमचंद को साहित्यिक पुरखा इसलिए कहा है क्योंकि प्रेमचंद अपने समय के लेख़कों में ही नहीं बल्कि संपूर्ण हिंदी साहित्य में सर्वोच्च स्थान रखते थे। वे यथार्थवादी लेखक थे। उन्होंने अपने आसपास, देश, काल तथा समाज की स्थिति का सच्चा तथा वास्तविक चित्रण अपने लेखन में किया है। उनका लेखन इतनी उच्चकोटि का होता था कि बहुत अच्छा लिखने वाले की तुलना उनसे की जाती थी। उन्होंने जिन विषयों पर लेखनी चलाई उनकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है। वे दूरद्रष्टा भी थे, जिन्हें तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों का अच्छा ज्ञान था।
आज के समय में लोगों की सोच और दृष्टिकोण में बहुत परिवर्तन आ गया है। लोग व्यक्ति की वेशभूषा को देखकर ही उसका स्वागत-सत्कार करते हैं। इसकी वजह से गुणवान व्यक्ति अच्छे कपड़ों के अभाव में सम्मानीय नहीं बन पाता। लोग अपने कपड़ों के माध्यम से अपनी हैसियत प्रदर्शित करते हैं। सादा कपड़े पहनने वाले को तो आज पिछड़ा समझा जाने लगा है। आज का युवा वर्ग तो अपनी वेशभूषा के प्रति अधिक सजग हो गया है। समाज में अपना सम्मान बढ़ाने के लिए निम्न वर्ग भी सम्पन्न वर्ग के समान ही आचरण करने लगा है। वह अपनी हैसियत से बढ़कर अपनी वेशभूषा और रहन-सहन के प्रति अधिक सजग हो गए हैं।
प्रत्येक मनुष्य का स्वभाव होता है कि वह अपनी गलती और बुराई को छिपाने का प्रयास करता है अर्थात वह उस पर पर्दा डालता है। प्रेमचंद का स्वभाव इसके विपरीत था। उन्होंने कभी भी अपनी कमियों को छिपाने का प्रयास नहीं किया। वे भीतर-बाहर से एक समान थे। लोग अपनी कमी को छिपाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं पर प्रेमचंद ऐसे नहीं थे।
व्यंग्य- जूते को हमेशा ही ताकत और सामर्थ्य का प्रतीक माना जाता रहा है। उसका स्थान नीचे अर्थात पैरों में होता है। टोपी सर पर पहनी जाती है इसलिए सम्माननीय है। आज लोग अपनी ताकत और पैसों के बल पर गुनी और सम्मानित व्यक्तियों को अपने सामने झुकने के लिए विवश कर देते हैं। अनेक बार ऐसा भी होता है कि लोगों को अपना स्वाभिमान और आत्मसम्मान भुलाकर उनके सामने झुकना पड़ता है।
प्रेमचंद ने सामाजिक बुराइयों तरफ कभी आंख उठाकर भी नहीं देखा | उन्होंने कभी उनसे समझौता नहीं किया | वे सामाजिक बुराइयों को इतना घृणित समझते थे कि उनकी तरफ हाथ से इशारा भी नहीं करते थे इसलिए उन्होंने लोगों को सावधान करने के लिए उनकी तरफ पैर की अंगुली से इशारा किया |