लेखक जीवन की सार्थकता किसमें मानता है ?
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जीवन की दिशा निश्चित होने पर मनुष्य बिना किसी संदेह के अपने जीवन की नौका को उस ओर खेने लगता है। ... जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम शरीर को साधन मानकर जीवन के कार्यक्रम का निर्माण करे। हमें साधन नहीं जुटाते रहना है, क्योंकि ऐसा करते हुए हम स्वयं ही साधन बन जाते है।
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महादेवी वर्मा कहती हैं कि जीवन में सुख और दुख दोनों का समान महत्व है। ये जीवन के अभिन्न अंग हैं। जिस तरह मेघ की सार्थकता पिघल कर बरसने में, जग को आनंद देने में है, उसी तरह जीवन की सार्थकता परिस्थितियों का सामना करने में है न कि उनसे पलायन करने में। मनुष्य के लिए आवश्यक है कि वह जीवन को उसकी परिपूर्णता में स्वीकार करे।Read more on Sarthaks.com - https://www.sarthaks.com/640158/
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