Hindi, asked by rahulmathur01225, 5 months ago

लेखक को ऐसा क्यों लगा कि बच्चों को काम पर नहीं जाना चाहिए

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Answered by kcsshweta
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Explanation:

बच्चों को काम पर जाते देखकर कवि के मन में प्रश्न उठ रहे हैं कि क्या उनके खेलने के लिए रखी गेंदें आकाश में गिर गई? उनकी विद्यालय की पुस्तकें दीमकों ने खा ली हैं? क्या उनके खिलौने किसी काले पहाड़ के नीचे दब कर नष्ट हो गए? क्या उनके विद्यालयों की इमारतें भूकंप में ढह गई? क्या उनके खेलने वाले बगीचे नष्ट हो गए जो इन्हें काम पर भेज दिया गया।

बच्चे उपर्युक्त सारी चीज़ों का उपयोग इसलिए नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। अतः धन के अभाव में वे अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति ही नहीं कर पा रहे तो ये सारी चीज़ें लेने का तो वे सोच ही नहीं सकते।

काम पर जाने वाले बच्चे खेल के साधनों जैसे- गेंदें, खिलौने एवं क्रीड़ा स्थल तथा बगीचों से तो वंचित हैं ही इसके अतिरिक्त वे शिक्षा संबंधी सुविधाओं से भी वंचित रह गए हैं।

‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ कविता में सामाजिक सरोकारों का महत्त्व देते हुए बच्चों के काम पर जाने की पीड़ा को कवि ने बड़े ही मर्मस्पर्शी ढंग से व्यक्त किया है। यह बच्चों के खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने की उम्र है पर सामाजिक विषमता ने उनकी शिक्षा, खेलकूद और भविष्य के अच्छे अवसर को उनसे छीन लिया है। बच्चों को यूँ काम पर जाने को किसी भूकंप के समान भयावह कहा गया है। वास्तव में इसमें कवि समाज की संवेदनहीनता पर व्यंग्य कर रहा है। समाज इन बच्चों को काम पर जाता देखकर भी चिंतित नहीं होता क्योंकि इसमें उनका बच्चा नहीं होता है और दूसरे बच्चे से उन्हें कोई लेना-देना नहीं। वे केवल मूक बनकर सब कुछ देखते रहते हैं क्योंकि ये उनके लिए बड़ी सामान्य बात है।

कवि के लिए बच्चों का काम पर जाना चिंता का विषय इसलिए बन गया है क्योंकि आज के बच्चे कल का भविष्य हैं। जिस उम्र में उन्हें खेल-कूदकर अपने बचपन जीने का आनंद लेना चाहिए और स्वयं को स्वस्थ और सबल बनाना चाहिए , उस उम्र में वे काम करके अपना भविष्य अंधकारमय बना रहे हैं। उन्हें तो पढ़-लिखकर योग्य नागरिक बनना चाहिए न कि काम करना चाहिए।

‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ कविता में कवि ने बच्चों के काम पर जाने की समस्या को प्रमुखता से उभारा है। उन्होंने समाज से प्रश्न किया है कि ऐसा क्या हो गया कि बच्चों को पढ़ने-लिखने की उम्र में काम पर जाना पड़ रहा है। समाज के लोग यह सब देखकर भी चुप बैठे हैं। कवि को समाज की यह संवेदनहीनता और भावशून्यता बड़ी ही भयानक लगती है। कवि समाज की इस संवेदनहीनता तथा भावशून्यता को दूर करना चाहता है। वह चाहता है कि समाज इन बच्चों के बारे में कुछ सोचे और उन्हें बाल-मजदूरी से छुटकारा दिलाए जिससे उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। सभी लोग मिलकर बच्चों को पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने का अवसर प्रदान कराएँ जिससे पढ़-लिखकर यही बच्चे कल देश के सुयोग्य नागरिक बन सकें।

बच्चों का बचपन पढ़ने-लिखने तथा खेलने-कूदने के लिए होता है। यह मस्ती से भरा हुआ तनाव मुक्त होता है। उन पर किसी का कोई दबाव नहीं होता। ऐसे में प्रतिकूल परिस्थितियों में उन्हें अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए काम पर जाना पड़ रहा है। यह देखकर एक तो हमारे सामने एक भयानक प्रश्न उठ खड़ा होता है। इससे बच्चों की खुशियाँ छिन जाती हैं और उनका जीवन और भविष्य अंधकारपूर्ण हो जाता है।

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Answered by Braɪnlyємρєяσя
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=> मेरे विचार से बच्चों को काम पर इसलिए नहीं भेजा जाना चाहिए क्योंकि इससे बच्चों का बचपन नष्ट होता है। वे जीवन भर के लिए मजदूर बनकर रह जाते हैं। बच्चों का काम पर जाना समाज के माथे पर कलंक है। इस कलंक से बचने के लिए बच्चों से बाल मजदूरी नहीं करवानी चाहिए।

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