लेखक को ऐसा क्यों लगा कि पूरी जिंदगी इसी बस में निकालनी पड़ेगी
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kyuki bas boht kharab halat mein thi aur bhoodi bhi ho gayi thi
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लेखक को ऐसा क्योंकी बस के एक पुलिया के ऊपर पहुँचते ही एक टायर फिस्स करके बैठ गया। वह बहुत जोर से हिलकर थम गई। अगर स्पीड में होती तो उछलकर नाले में गिर जाती। कवि ने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा। वह टायरों की हालत जानते हैं फिर भी जान हथेली पर लेकर इसी बस से सफ़र कर रहे हैं।अगर बस नाले में गिर पड़ती तो वे सब मर जाते कवि ने सोचा इस आदमी के साहस और बलिदान भावना का सही उपयोग नहीं हो रहा है। इसे तो किसी क्रांतिकारी आंदोलन का नेता होना चाहिए । थोड़ी देर बाद दूसरा घिसा टायर लगाकर बस फिर चली तब उन्होने वक्त पर पन्ना पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी।लगता था, उन्होने सोचा की लगता है जिंदगी इसी बस में गुजारनी है अैर इससे सीधे उस लोक को प्रयाण कर जाना है। इस पृथ्वी पर उसकी कोई मंजिल नहीं है।
hope it's helpful
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